Somvati Amavasya 2022: साल की अंतिम सोमवती अमावस्या कब? यह व्रत कथा पढ़ने से मिलता है संतान सुख और पति के दीर्घायु का वर
Somvati Amavasya 2022: सोमवार को जो अमावस्या पड़ती है, उसे सोमवती अमावस्या का नाम दिया गया है. साल 2022 की यह अंतिम सोमवती अमावस्या है.
Somvati Amavasya 2022: हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का विशेष महत्त्व होता है. सोमवती अमावस्या के दिन व्रत पूजन और पितरों को जल तिल देने की परंपरा है. मान्यता है कि ऐसा करने से बहुत ही पुण्य की प्राप्ति होती है.
वहीं सुहागिनों के लिए सोमवती अमावस्या व्रत का अति विशेष महत्व है. कहते हैं कि इस दिन व्रत करने और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. दांपत्य जीवन में स्नेह और सद्भाव भी बढ़ता है. सुहागिनें संतान प्राप्ति के लिए भी सोमवती अमावस्या का व्रत रखती है और पूजा के समय व्रत कथा सुनती हैं. मान्यता है कि व्रत कथा सुनने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है और वे मन वांछित वर प्राप्त करती है.
सोमवती अमावस्या कब?
साल 2022 की पहली सोमवती अमावस्या 31 जनवरी को थी जबकि दूसरी सोमवती अमावस्या 30 मई के दिन पड़ेगी.
सोमवती अमावस्या व्रत कथा
एक गरीब ब्राह्मण था जिसकी कन्या बहुत ही सुशील और गुणवान थी. परंतु धन न होने के कारण उसका विवाह नहीं हो रहा था. तब गरीब ब्राह्मण ने एक साधू से इसका उपाय पूंछा. तो साधू ने कहा कि पास के एक गांव में सोना नाम की एक धोबिन अपने बेटे व बहु के साथ रहती है. जो कि बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह उसकी सेवा करे और धोबिन अपने मांग का सिंदूर कन्या के मांग में लगा दे तो इसका वैधव्य योग मिट सकता है.
साधू की बात मानकर कन्या रोज धोबिन के घर जाकर उसका सारा काम करती और वापस चली आती. इसको लेकर धोबिन सोचने लगी कि यह काम कौन कर जाता है. इसका पता लगाने के लिए धोबिन इस पर नजर रखने लगी. एक दिन कन्या धोबिन के घर का सारा कम करके वापस आ रही थी तो धोबिन ने कन्या को देख लिया.
सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं. तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी. वह तैयार हो गई. परंतु जैसे ही सोना धोबिन ने अपनी मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, तो सोना धोबिन का पति गुजर गया. उसे इस बात का पता चल गया. उसने निरजल ही पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा की. उसके बाद ही जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति को जीवन दान मिल गया.
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