Somvati Amavasya Katha: आज सोमवती अमावस्या पर जानें कथा, कैसे कुंवारी कन्या को मिला अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान
Somvati Amavasya Vrat Katha: आज सोमवती अमावस्या या हरियाली अमावस्या का व्रत है. इस दिन व्रत के साथ इसकी कथा करना और सुनने पर भी लाभ होता है. जानते है सोमवती अमावस्या व्रत की कथा.
Somvati Amavasya Vrat Katha: आज सोमवती अमावस्या है, साथ ही आज सावन का दूसरा सोमवार, सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है. अमावस्या के दिन राहु ज्यादा हावी रहते हैं. ऐसे में इस दिन स्तोत्र का पाठ राहु के बुरे असर को नियंत्रित करता है. इसके साथ ही राहु के दोष से भी मुक्ति दिलाता है और नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है. जानते हैं सोमवती अमावस्या की कथा. इस कथा को व्रत के साथ जरुर करें या सुनें.
सोमवती अमावस्या की कथा
एक ब्रह्मण परिवार में पति, पत्नी और पुत्री रहते थे. पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी. उस लड़की में समय के साथ सभी गुणों का विकास हो रहा था. लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए. कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है.
लड़की के माता-पिता ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करें की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधू ने बताया कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोबी जाती की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह कन्या उसकी सेवा करें और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है.
साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है. यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही. कन्या तड़के ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती. सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूँ. इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तड़के ही घर का सारा काम करके चला जाता हा.
कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं. तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह तैयार हो गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी.उस दिन हरियाली अमावस्या थी. ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा. इस तरह धोबिन का पति जीवित हो उठा.
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