Spirituality, Mata Hinglaj in Pakistan: हिंदू धर्म में मुख्यत: चार समुदाय क्रमश: वैदिक, वैष्णन, शैव और स्मार्त हैं. इनमें शैव संप्रदाय के अंतर्गत शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं. इसमें दसनामी और 12 गोरखपंथी संप्रदाय भी शामिल है. जानते हैं इनमें नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति कैसे हुई और इनकी कुलदेवी कौन हैं.
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति (Nath Sampradaya)
'नाथ' शब्द हिन्दू, बौद्ध और जैन संतों के बीच प्रचलित है. 'नाथ' का अर्थ स्वामी है. वैष्णव और शैवों में स्वामी यानी 'नाथ' का बहुत महत्व होता है. नाथ संप्रदाय योगियों के ऐसे समुदाय को कहते हैं, जोकि हठयोग पर आधारित है. ये दीक्षा प्राप्त करने के लिए अपने कान छिदवाते हैं. इन्हें तांत्रिक वज्रयान का सात्विक रूप माना जाता है. नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति ‘आदिशंकर’ से हुई है. इसे भगवान शिव का अवतार माना गया है. क्योंकि भगवान शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है आरंभ.
- भगवान शिव के बाद इस परंपरा में भगवान दत्तात्रेय का नाम आता है.
- दत्तात्रेय के बाद सिद्ध संत गुरु मत्स्येन्द्रानाथ ने नाथ परंपरा को संगठित करते हुए पुन: इसे आगे बढ़ाया.
- गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के बाद इनके शिष्य गुरु गोरखनाथ ने शैव धर्म के प्रचलित धाराओं और धारणाओं को एकजुट करते हुए ‘नाथ परंपरा’ को नई ऊंचाई तक पहुंचाया.
- इसके अलावा नाथ साधुओं में भर्तृहरि नाथ, नागनाथ, चपर्टनाथ, रेवणनाथ, कनीफनाथ, जालंधरनाथ, कृष्णापाद, बालक गहिनीनाथ योगी, गोगादेव, रामदेव और साईंनाथ आदि जैसे साधुओं के नाम प्रमुख हैं.
- महार्णव तंत्र में नवनाथ को ही ‘नाथ’ संप्रदाय का मूल प्रवर्तक कहा गया है.
नाथ संप्रदाय से माता हिंगलाज का संबंध
नाथ संप्रदाय माता हिंगलाज को अपनी कुलदेवी मानता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सती के वियोग में दुखी भगवान शिव जब सती के पार्थिव देह लेकर तीनों लोकों में घूमने लगे तो विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए. जिस-जिस स्थान पर सती के अंग गिरे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा गया.
कहा जाता है कि देवी सती के सिर वाला ब्रह्मरंध्र भाग हिंगोल नदी के पश्चिमी तट के किर्थर पर्वत की एक गुफा में गिरा था. इसी से नाथ संप्रदाय की कुलदेवी का इतिहास जुड़ा हुआ है. हालांकि माता हिंगलाज देवी के चरित्र या फिर इससे जुड़ा इतिहास अप्राप्य है. माता हिंगलाज संबंधित छंद गीत मिलते हैं जोकि इस प्रकार हैं...
सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥
अर्थ है: सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है.
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है माता हिंगलाज का मंदिर (Mata Hinglaj Shaktipeeth in Pakistan Balochistan)
नाथ संप्रदाय की कुलदेवी माता हिंगलाज का मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित है, जोकि हिंदू मंदिर है. यह कराची के उत्तर-पश्चिम में 250 किलोमीटर, अरब सागर से 119 किमी, अंतर्देशीय और सिंधु के मुंहाने के पश्चिम में 130 किमी में स्थित है. यह हिंगोल नदी के पश्चिमी तट पर, मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक शृंखला के अंत में है. यह हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल है.
हिंगलाज माता का मंदिर देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है. खास बात यह है कि यहां माता की कोई ऐसी प्रतिमा नहीं है जोकि मानव द्वारा निर्मित हो, बल्कि यहां मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बनी है, जिसमें माता की प्रतिमा के रूप में मिट्टी की वेदी है. इसे ही हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी कहा जाता हैं. इसे नानी मंदिर भी कहते हैं. यह पाकिस्तान समेत दुनियाभर के हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन है. साथ ही मंदिर को लेकर मुस्लिम समाज की भी अगाध आस्था है.
माता हिंगलाज के मंदिर को पाकिस्तानी मुस्लिम क्यों कहते हैं ‘हज’
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित माता हिंगलाज के मंदिर को लेकर पाकिस्तानी मुस्लिमों की भी गहरी श्रद्धा व आस्था है. यही कारण है कि माता हिंगलाज के मंदिर की सुरक्षा के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग तैनात रहते हैं और सुरक्षा करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा इसे ‘नानी मंदिर’ कहा जाता है. माता हिंगलाज मंदिर से जुड़े धार्मिक महत्व और प्राचीन परंपरा पालन करते हुए पाकिस्तान बलूचिस्तान की स्थानीय मुस्लिम जनजातियां तीर्थयात्रा समूह में शामिल होती है और इससे ‘नानी की हज’ कहते हैं.
कैसे पहुंचे हिंगलाज मंदिर
हिंगलाज मंदिर में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु को अकेले जाने की अनुमति नहीं है. मंदिर जाने के लिए 30-40 श्रद्धालुओं का समूह बनता है. श्रद्धालुओं को माता के दर्शन के लिए कराची से 6-7 मील चलकर हाव नदी पार करनी पड़ती है. फिर पहाड़ों को पार करते हुए भक्त मंदिर तक पहुंचते हैं.
साथ ही मंदिर के मार्ग में हजार फीट ऊंचे पहाड़, विशाल सुनसान रेगिस्तान, घने जंगल, जंगल जानवर, 300 फीट मड ज्वालामुखी के साथ ही प्राकृतिक दिक्कतों, डाकूओं और आतंकवादियों का भी डर रहता है. मंदिर के लिए श्रद्धालुओं को 55 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है जोकि 4 पड़ावों में पूरी होती है.
मार्ग में पानी के 3 कुएं भी पड़ते हैं. इसी कुएं का पानी पीकर श्रद्धालु पवित्र होकर माता के दर्शन करते हैं. मान्यता है कि हिंगलाज माता के इस मंदिर में दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. मनोरथ सिद्धि के लिए यहां गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव ओर दादा मखान जैसे आध्यात्मिक संत भी आ चुके हैं.
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