वास्तुशास्त्र घर की प्राकृतिक ऊर्जा के बेहतर प्रयोग पर जोर देता है. सीढ़ियां बहुमंजिला मकानों की महत्वपूर्ण जरूरत होती हैं. इनका निर्माण करते समय दिशा और स्थान का विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक है.


सीढ़ियों के निर्माण में सबसे जरूरी बात यह है कि सीढ़ियों को कभी भी चार प्रमुख दिशाओं के मिलने वाले कोणों पर नहीं बनाया जाना चाहिए. यानी सीढ़ियां ईशान कोण, आग्नेय कोण, नैरक्त्य कोण और वायव्य कोण में नहीं होनी चाहिए. सीढ़ियों को मजबूत आधार चाहिए होता है. कोण की दिशाएं सीढ़ियों के लिए शुभकर नहीं होती हैं.


ईशान कोण में सीढ़ियां होने से घर के सदस्यों को ईश्वर आराधना, ध्यान और शैक्षिक क्षेत्र में कठिनाई का सामना करना पड़ता है.


आग्नेय कोण में सीढ़ियां होने से घर के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है. खानपान से जुड़ी समस्याएं उभरती हैं.


नैरक्त्य कोण राहू की दिशा मानी जाती है. इस दिशा में सीढ़ियां अस्थिरता को बढ़ावा देती हैं. महत्वपूर्ण निर्णय लेने में कठिनाई होती है. परिवार के मुखिया की असहजता बढ़ती है.


वायव्य कोण में सीढ़ियां होने से लोगों का सामाजिक संपर्क प्रभावित होता है. लोगों के व्यवहार में असहजता बढ़ती है.


उक्त चार दिशाओं के साथ ही भवन के मध्य स्थान में भी सीढ़ियां नहीं बनाई जानी चाहिए. यह स्थान ब्रह्मस्थान होता है. इसे वास्तु अनुसार जस का तस रखने का प्रयास किया जाता है. पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में सीढ़ियां बनाया जाना शुभकारक होता है. सीढ़ियों दिशा की स्पष्टता से मजबूत आधार मिलता है.