Mahabharat Katha: महाभारत के युद्ध को धर्म युद्ध और विनाशकारी युद्ध कहा जाता है. जोकि कौरवों और पांडवों के मध्य हुआ. कहा जाता है कि कौरवों की महत्वकांक्षाएं चरम पर पहुंच गई थी.


वहीं विदुर जैसा ज्ञान होने के बाद भी राजा धृतराष्ट पुत्र मोह में इस कदर डूब गए थे कि उन्हें सही-गलत भी नजर नहीं आ रहा था. जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था, तब भी सभी सिर झुकाएं इस शर्मसार होने वाली घटना के साक्षी बनकर बैठे हुए थे.


महाभारत के युद्ध में कौरव अर्धम और पांडव धर्म के साथ कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़े. महाभारत युद्ध के दौरान ऐसी कई विशेष घटनाएं घटित हुई जो आज भी लोगों के लिए शिक्षा, क्षेत्र, संदेश और उपदेश की तरह है. महाभारत युद्ध के मैदान कुरूक्षेत्र से ही गीता उपदेश की उत्पत्ति भी मानी जाती है जोकि श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को प्राप्त हुआ था.


लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला था और क्यों युद्ध के बाद अर्जुन का रथ जलकर राख हो गया था, जिस पर अर्जुन और उनके सारथी बने श्रीकृष्ण सवार थे.


कितने दिनों तक चला था महाभारत का युद्ध


महाभारत का युद्ध पूरे 18 दिनों तक चला था. ज्योतिषियों और जानकारों के अनुसार कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14  से युद्ध प्रारम्भ हुआ जो लगातार 18 दिनों तक चला था. 


महाभारत के अंतिम यानी अठाहरवें दिन भीम, दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करते हैं, जिससे दुर्योधन की मृत्यु को हो जाती है और इस प्रकार दुर्योधन की मृत्यु होने से पांडव विजयी हो जाते हैं.


महाभारत युद्ध के बाद क्यों जलकर राख हो गया अर्जुन का रथ


जिस रथ पर अर्जुन महाभारत का युद्ध लड़ रहे थे, उसमें श्रीकृष्ण, हनुमान जी और शेषनाग भी थे. श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने हनुमान जी का आहवन कर उन्हें रथ के ऊपर पताका (ध्वज) के साथ विराजित होने का आग्रह किया और श्रीकृष्ण के कहने पर शेषनाग ने अर्जुन के रथ के पहिए को जकड़े रखा, जिससे कि शक्तिशाली शस्त्रों का भी रथ पर प्रभाव न पड़े. यह सारी व्यवस्था श्रीकृष्ण के अर्जुन के लिए की थी. क्योंकि अर्जुन धर्म के लिए लड़ रहे थे.


जब युद्ध समाप्त हो गया और पांडव विजयी हो गए तो अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि आप पहले रथ से उतरिए फिर मैं उतरूंगा. इस पर श्रीकृष्ण बोले, नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो. भगवान की आज्ञा और आदेश मानकर अर्जुन रथ से उतर गए. इसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ से उतर गए. शेषनाग भी रथ को छोड़ पाताल लोक चले गए और हनुमान जी भी अंतर्ध्यान हो गए.


श्रीकृष्ण रथ से उतरने के बाद अर्जुन को कुछ दूर ले गए और इतने में ही अर्जुन के रथ से अग्नि की लपटे निकलने लगी और रथ धूं-धूं कर जलकर राख हो गया. अर्जुन ने आश्चर्य होकर श्रीकृष्ण से पूछा, भगवान यह क्या हुआ!


कृष्ण बोले- हे अर्जुन! यह रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल चुका था. क्योंकि पताका लिए हनुमान जी और स्वयं मैं रथ पर थे इसलिए रथ मेरे संकल्प से चल रहा था. अब जब तुम्हारा कार्य पूरा हो चुका है तो मैंने उसे छोड़ दिया और इसलिए यह रथ भस्म हो गया.’


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