Ram Katha: अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं. किसी भी रानी के कोई संतान नहीं थीं. जिस कारण राजा दशरथ और सभी रानियां भी परेशान रहती थीं. जब अधिक समय बीतने लगा तो राजा दशरथ को राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर चिंता सताने लगी.


महर्षि वशिष्ठ को बताई दशरथ की परेशानी
भगवान राम के जन्म से जुड़ी घटना का वाल्मिकी रामायण व रामचरित मानस में विस्तार से वर्णन किया गया है. महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ के गुरु थे. दशरथ की गुरुमाता और महर्षि वशिष्ठ की पत्नी ने राजा दशरथ की चिंता को महसूस किया और इसके बारे में महर्षि वशिष्ट को बताया. गुरुमाता ने चिंता जाहिर करते हुए महर्षि से कोई उपाय करने के लिए कह. इस पर महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह चिंता उचित है लेकिन इस बारे में राजा दशरथ ने कभी जिक्र ही नहीं किया तो कैसे इस समस्या का हाल निकालें. गुरुमाता ने कहा महर्षि इसका हल जो भी हो आप तुरंत निकालें. महर्षि वशिष्ट ध्यान में लीन हो गए.


गुरुमाता की युक्ति काम कर गई
गुरुमाता भी महर्षि के तरह विद्वान थीं वे इसकी युक्ति निकालने लगी और एक दिन अपने पुत्र को गोद में लेकर दशरथ के महल पहुंच गईं. गोद में बालक को देख दशरथ के मन में बालक को खिलाने की जाग उठी और उन्होंने उसे गोद में लेकर खिलाना शुरू कर दिया. दशरथ बालक के साथ खेल में लीन हो गए तो गुरुमाता ने दशरथ से कहा कि महाराज आप महर्षि के शिष्य हैं लेकिन आपके कोई पुत्र नहीं है, ऐसे में इस बालक का शिष्य कौन बनेगा.


जब दशरथ को हुई गलानि
गुरुमाता की इस बात को सुनकर दशरथ ग्लानि भर गए और पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और इस का उपाय पूछा. तब महर्षि ने दशरथ को बताया कि आपको पुत्र प्राप्ति हो सकती है लेकिन इसके लिए आपको पुत्रेष्ठि यज्ञ करना होगा.


पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने का दिया सुझाव
दशरथ ने कहा कि गुरुवर इस यज्ञ के लिए वे तैयार हैं, यज्ञ आरंभ किया जाए. इस बार महर्षि बोले कि यह यज्ञ इतना आसान नहीं है. दशरथ ने इसका उपाय पूछा तो महर्षि ने बताया कि जो भी इस पुत्रेष्ठि यज्ञ को करेगा उसे जीवन भर की तपस्या की आहुति यज्ञ में देनी होगी. इस पर दशरथ ने महर्षि से पूछा कि ऐसा कौन है जो इस कार्य को करने के लिए तैयार होगा. इस बार महर्षि ने उन्हें बताया कि आपकी पुत्री शांता जिन्हें रोमपाद नाम के राजा को गोद दे दिया था.


इस प्रकार हुआ भगवान राम का जन्म
रोमपाद ने बाद में शांता का विवाह ऋंग ऋषि से कर दिया था. ऋंग ऋषि ही इस यज्ञ को कर सकते हैं. दशरथ ने ऋंग ऋषि को इस यज्ञ के लिए तैयार किया और बदले में उनकी संतान के भरण-पोषण के लिये जीवन पर्यंत साधन उपलब्ध कराए. यज्ञ आरंभ हुआ और यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे तीनों रानियों को खाने के लिए दी गई. खीर का सेवन करने से रानियों को गर्भधारण हुआ. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता कौशल्या के गर्भ से भगवान राम ने जन्म लिया. अन्य रानियों को भी पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नामकरण महर्षि वशिष्ठ ने किया.


Ram Mandir Bhumi Pujan: पीएम मोदी बोले- मंदिर का अस्तित्व मिटाने की कोशिश हुई, राम हमारे मन में बसे हैं