ज्ञान का उद्भव अनुभव, समझ और सूचना के सम्मिश्रण से होता है. यह गुरु के माध्यम से सहज ही प्राप्त होता है. किताबों में सूचनाएं होती हैं. इनके भरोसे रहने अथवा इनकी बातों पर अक्षरशः पालन करने से चूक हो सकती है. गुरु विवेक बुद्धि और अनुभव से सूचनाओं को जीवंत बनाते हैं. इससे ज्ञान का प्रस्फुटन सहजता से हो सकता है.


जीवन में गुरु का महत्व असाधारण होता है. सही मायने में गुरु जैविक जीवन में ज्ञान का अंश स्थापित कर उसे बड़ा बनाने में सहायक होता है. इसीलिए गुरु को की महत्ता पुराणों में ईश्वर के तुल्य की गई है.


गुरु गोविंद दोउू खड़े का के लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो मिलाय


उक्त दोहे से स्पष्ट है कि सर्वाेच्च सत्ता से भेंट के लिए ज्ञान आवश्यक है. ज्ञान गुरु के सानिध्य से प्राप्त होता है। ऐसे में गुरु ईश्वर तुल्य हो जाता है. सफलता का मूल मंत्र यही है कि ज्ञान विवेक को जाग्रत करें. इसके लिए स्पष्ट गुरु परंपरा में बनाएं अथवा भगवान दत्तात्रेय की तरह चराचर में किसी से गुरु तुल्य सीख लेकर आगे बढ़ते रहें.


भगवान दत्तात्रेय स्पष्ट किसी को गुरु नहीं बनाया लेकिन उन्होंने अनुभव के आधार पर 24 गुरुओं को स्वीकार किया. इसमें मधुमख्खी से लेकर चंद्रमा तक शामिल हैं. भारत में गुरु परंपरा का अत्यंत पुरातन इतिहास है. राम वशिष्ठ जी के आश्रम में शिक्षा प्राप्ति को गए थे. भगवान कृष्ण ने उज्जयिनी में संदीपनी के आश्रम मे शिक्षा ली. भारत में सबसे पुराने ज्ञान भंडार वेद ग्रंथ गुरु परंपरा और श्रुति के माध्यम से ही आगे बढ़े हैं.