सक्सेस मंत्र : श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक अपने आप में सफलता के ऐसे सिद्ध मंत्र हैं जिन्हें अपना कर व्यक्ति आम से विशेष बन जाता है. जीवन का सार ही गीता उपदेश है. महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन जब दुविधा में फंस गए तब भगवान श्री कृष्ण ने उनकी तमाम दुविधाओं, शंकाओं और चिंताओं का निवारण किया. भगवान श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र में तब अर्जुन को गीता उपदेश सुनाआ. आइए जानते हैं श्रीमद्भगवत गीता से आज का सक्सेस मंत्र...
तब स्वयं प्रभु लेते हैं अवतार
जब चारों तरफ अंधकार छा जाता है. धर्म दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं देता है. धरती पर अर्धम बढ़ जाता है. निराशा के बदल लोगों की उम्मीदों की ढक लेते हैं तब स्वयं भगवान इस धरती पर अवतार लेते हैं. इसलिए व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए. अंधेरा कुछ समय के लिए ही होता है इसके बाद फिर सबेरा होता है. सूरज निकलता है. प्रकाश होता है. व्यक्ति को सदैव सत्कर्म करते रहने चाहिए. चाहे कितनी ही विपरीत परिस्थितियां हों. व्यक्ति को अपना धैर्य और कलात्मकता को नहीं त्यागना चाहिए. व्यक्ति को नकारात्मक विचारों और ऊर्जा से बचना चाहिए. ये व्यक्ति के विकास में सबसे बड़ी बाधा होती हैं.
वस्तुओं के प्रति लालसा ठीक नहीं होता
व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन जीना है तो उसे भोग विलास की वस्तुओं के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए. वस्तुओं के पीछे भागने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाता है. वह विलासी बनकर रह जाता है. इससे उसकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है. एक समय ऐसा भी आता है जब वह अच्छे और बुरे का भेद भी नहीं कर पाता है. व्यक्ति को साधनों की तरफ अधिक आकर्षित नहीं होना चाहिए. ये सब व्यक्ति के ध्यान को भटकाते हैं. प्रभु की भक्ति के मार्ग से विरक्त करते हैं और सत्य से दूर ले जाते हैं. यहीं से दुखों का आरंभ होता है और पाप की तरफ अग्रसर होता है. अध्यात्म और प्रभु की शरण में ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है. इसलिए व्यक्ति को अपना सबकुछ प्रभु को समर्पित कर देना चाहिए और निरंतर कर्म करते रहना चाहिए.
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