Success Mantra : श्रीमद्भागवत गीता को जिसने समझ लिया, समझो प्रभु ने उसे अपना लिया
भारतीय दर्शन में श्रीमद्भावगत गीता को जीवन का सार कहा गया है. आइए जानते हैं श्रीमद्भगवत गीता की उन शिक्षाओं के बारे में जिन्हें अपनाकर जीवन को सफल बनाया जा सकता है.
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नई दिल्ली: श्रीमद्भागवत गीता एक ग्रंथ नहीं है. श्रीमद्भागवत गीता तो हर भारतीय के जीवन का दर्शन है. कुरूक्षेत्र में अर्जुन के रथ को हांकने वाले भगवान कृष्ण ने युद्ध के दौरान गीता का उपदेश दिया था. कुरूक्षेत्र में खड़े होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो शिक्षाएं और उनके प्रश्नों के जो उत्तर दिए इन्हें बाद में श्रीमद्भगवत गीता कहा गया. जो 18 अध्याय और 700 श्लोकों में मौजूद है. श्रीमद्भगवत गीता में हर प्रश्न का उत्तर है. जब व्यक्ति धर्म संकट में फंस जाता है और उसके सामने निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता है तो श्रीमद्भगवत गीता प्रकाश की किरण उपलब्ध कराती है. इसकी महिमा अपार है. जीवन में जिस किसी भी ने भी गीतों के सार को समझ लिया समझो उसका जीवन पार है. उसने जीवन का सत्य जान लिया. और इस पृथ्वी पर उसकी क्या अहमियत है वह समझ जाता है.
क्रोध व्यक्ति के पतन का कारण बनता है: क्रोध करने से बचना चाहिए. क्योंकि क्रोध करने से व्यक्ति असुर बन जाता है. क्रोध करने पर वह अच्छे बुरे का अंतर भूल जाता है. क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए. जिस व्यक्ति ने क्रोध पर नियंत्रण करना सीख लिया वही महानता की ओर अग्रसर हुआ है.
लालच नहीं करना चाहिए: जो व्यक्ति सदैव दूसरों की वस्तुओं पर लालचाता रहता है ऐसा व्यक्ति कभी खुश नहीं रह सकता है. लालच का परित्याग करना चाहिए. यह एक मानसिक बीमारी है जो एक दिन व्यक्ति के सामाजिक पतन का कारण बन जाती है.
कुछ भी स्थाई नहीं है: जो आया है वह जाएगा. जिसने जन्म लिया है उसके मृत्यु का भी दिन सुनिश्चित है. इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए. मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद भी मेरा तेरा,अपना पराया में जो लोग फंसे रहते हैं उनका जीवन व्यर्थ है. मनुष्य का जीवन श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्राप्त हुआ है. जिसने इसके महत्व को पहचान लिया वही अमर हो गया.
सभी को साथ लेकर चलें: जो व्यक्ति सभी को साथ लेकर चलते हैं ऐसे लोग समाज में सम्मान तो पाते ही हैं साथ ही साथ उनका अनुसरण भी किया जाता है. यह भाव निस्वार्थ होना चाहिए. इसमें कोई लालच नहीं होना चाहिए. लालच में यह भाव बदल जाएगा. जिसके चलते वह परिणाम नहीं आएंगे जिसकी कल्पना की है.
स्वच्छता बाहरी नहीं अंदर की भी होनी चाहिए: स्वच्छता शरीर के बाहर की नहीं अंदर की भी होनी चाहिए. मन की स्वच्छता बहुत जरूरी है. जबतक मन साफ नहीं है, सोच अच्छी नहीं और भाव सुंदर नहीं है तब तक पूरी तरह से स्वच्छ नहीं माने जाओगे.
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