Sufism: अबुल हसन यामीन उद-दीन खुसरो (1253-1325), जिन्हें हम सभी अमीर खुसरो (Amir Khusrau) के नाम से जानते हैं. प्रेम, समर्पण, त्याग, इश्क, मोहब्बत और लगाव आप चाहे प्यार को इनमें से किसी शब्द में जाहिर कर लें. लेकिन भारतीय संस्कृति और सूफीयाना इश्क का सही अर्थ तो सिर्फ खुसरो को ही पता था. 


अपने अद्भुत प्रेम और समर्पण भाव से खुसरो ने सूफी संत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया (Khwaja Nizamuddin Auliya) का दिल जीत लिया था. हजरत निजामुद्दी के प्रति खुसरो का प्रेम आत्मीय और सम्मानीय था.


कहने को तो दोनों गुरु-शिष्य थे. लेकिन खुसरो का अपने प्रति अथाह प्रेमा भक्ति देख निजामुद्दीन औलिया ने कहा था कि, मेरी कब्र के पास ही खुसरो का क्रब बनाना और ऐसा हुआ भी. नई दिल्ली (New Delhi) में हजरत निजामुद्दीन औलिया के सूफी मकबरे यानी दरगाह (Dargah Nizamuddin Auliya) के सामने लाल पत्थरों से अमीर खुसरो का मकबरा बना.


अमीर खुसरो सूफी कवि-गायक, संगीतकार थे और हजरत निजामुद्दी उनके दोहे और कविताओं के मुरीद थे. पीर यानी गुरु के प्रति प्रेम भाव को प्रकट करने के लिए अमीर खुसरो ने कई दोहे और कविताओं की रचना की. अमीर खुसरो की रचना ‘छाप तिलक सब छीनी रे...’ बहुत प्रसिद्ध है


इस कविता में खुसरो अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया को संबोधित करते हैं. वैसे तो विभिन्न तरह से इस कविता के अर्थ के बारे में बताया जाता है. लेकिन सूफी साधना पद्धति को जाने बगैर इस कविता के सही अर्थ को समझ पाना संभव नहीं है.


इस कविता के सही अर्थ को जानने से पहले आपको सूफी प्रेम को जानना होगा, प्रेमा भक्ति और भाव को समझना होगा. इन सभी के बिना अगर आप इसका अर्थ समझने की कोशिश करते हैं तो यह इस रचना के प्रति अन्याय है.


हिंदू धर्म (Hindu Dharma) में जिस तरह ईश्वर की भक्ति को समझने के लिए नवधा भक्ति (Navdha Bhakti) यानी नौ तरह की भक्ति को समझना जरूरी है, उसी तरह हजरत और खुसरो की प्रेम भक्ति को समझना होगा. चलिए जानतें हैं ब्रज भाषा में लिखी छाप तिलक सब छीनी रे रचना के अर्थ और भाव के बारे में..


छाप तिलक सब छीनी (chhap tilak sab chini)


छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा
अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
खुसरो निजाम के बल बल जाए
मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके


तूने नैना मिलाकर मेरा तिलक (चिह्न) छीन लिया. प्रेमा भक्ति की मदिरा पिलाकर तूने अपने नैन से मुझे मतवारी (मदहोश) बना दिया. हरी चूड़ियों वाली मेरी गोरी कलाइयां अब तेरे नैनों के कब्जे में है. मैं तेरी हूं और मुझ पर तेरा रंग है. तूने अपनी नज़र से उसे मुझ पर उड़ेला है. मेरी ज़िंदगी अब तेरी है, ऐ निजाम, तूने अपनी नजर से मुझे सुहागन (दुल्हन) बना लिया.


ये भी पढ़ें: Sufism: मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि, हज़रत बाबा बुल्ले शाह ने क्यों कही ये बात?





Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.