Surya Grahan 2023: सूर्य ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा क्या बताती है, नहीं जानते हैं तो यहां पढ़ें
Surya Grahan 2023: 20 अप्रैल 2023 को सूर्य ग्रहण है. करीब 19 साल बाद मेष राशि में सूर्य ग्रहण रहेगा. क्या आप जानते हैं ग्रहण का संबंध समुद्र मंथन से है. आइए जानते हैं कैसे.
Surya Grahan 2023, Samudra Manthan Katha: 20 अप्रैल 2023 को सूर्य ग्रहण है.भारतीय समयानुसार, यह सूर्य ग्रहण इन देशों में सुबह 07 बजकर 05 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. यह सूर्य ग्रहण अश्विनी नक्षत्र में लगेगा, इस नक्षत्र का स्वामी केतु है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करीब 19 साल बाद मेष राशि में सूर्य ग्रहण रहेगा. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य ग्रहण लगता है, जिससे सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से छिप जाता है. सूर्य का प्रकार पृथ्वी तक सीधे नहीं पहुंता, इस घटना को सूर्य ग्रहण करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं ग्रहण का संबंध समुद्र मंथन से है. आइए जानते हैं कैसे.
समुद्र मंथन से जुड़ी है ग्रहण की कथा (Samudra Manthan and Grahan connection)
विष्णु पुराण के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, इसमें से 14 रत्न निकले थे. मंथन के दौरान जब अमृत निकला तो असुर और देवता इसे ग्रहण करने के लिए युद्ध पर उतारु हो गए. कभी देवता कलश लेकर भागते तो कभी दैत्य. विवाद बढ़ता देख श्रीहरि विष्णु ने इस समस्या का समाधान निकाला और नारायण ने स्वंय मोहिनी बनकर अमृत पिलाने की जिम्मेदारी ले ली. मोहिनी का सुंदर रूप देखकर सभी दैत्य जैसे उन पर मोहित हो गए.
मोहिनी के मायाजाल में फंसे असुर
विष्णु जी जानते थे कि अगर दैत्यों ने अमृतपान कर लिया तो वह अमर हो जाएंगे और समस्त सृष्टि पर संकट में आ जाएगी. एक तरफ जहां देवता अमृतपान कर रहे थे, मोहिनी के मायाजाल में फंसकर दैत्य अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. दैत्यों में एक अति चतुर असुर था स्वरभानु, वह विष्णु जी की इस चाल को समझ गया. अमृत पाने के लिए उसने देवता का रुप धारण कर चुपचाप अमृत ग्रहण करने देवताओं की पंक्ति में जा बैठा.
राहु-केतु के कारण लगता है ग्रहण
चंद्र और सूर्य ने स्वरभानु को पहचान गए और सारा वृतांत विष्णु जी से कह दिया. नारायण अत्यंत क्रोधित हुए और सुदर्शन चक्र से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, चूंकि उस दैत्य ने अमृत की कुछ बूंदे ग्रहण कर ली थी इसलिए वह राहु और केतु के रूप में अमर हो गया. राक्षस का सिर राहु और धड़ केतु कहलाया. तभी से राहु-केतु, चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानते हैं और समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसते (खाते) है. धर्म में इस घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहा जाता है. अक्सर पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण लगता है तो वहीं अमावस्या पर सूर्य ग्रहण.
ग्रहण के समय राहु-केतु की अशुभ छाया से बचने के उपाय
- सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय राहु-केतु और नकारात्मक शक्तियों का संचार तेज हो जाता है. ग्रहण में पाप ग्रहों की अशुभ छाया से बचने के लिए शिव जी के मंत्रों का जाप करें. राहु-केतु शिव के परम भक्त हैं. महादेव साधना करने वालों पर बुरी शक्तियों, पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव का असर नहीं होता.
- सूर्य ग्रहण की अवधि में ॐ शीतांशु, विभांशु अमृतांशु नम: या गायत्री मंत्र का निरंतर जाप करते रहना चाहिए. मान्यता है इससे मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और किसी तरह की आर्थिक हानि नहीं होती.
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