Surya Grahan 2023 Sutak Kaal: सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय सूतक काल का विशेष महत्व होता है. हिंदू धर्म में सूतक और पातक नाम से दो परंपराएं प्रचलित है, आइए जानते हैं इनके अंतर, महत्व और नियम. शास्त्रों में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई नियम और परंपराएं बताई गई हैं. जन्म और मरण के अलावा ग्रहण से भी सूतक और पातक का गहरा संबंध है. इनका पालन न करने वालों का जीवन प्रभावित होता है.
सूतक क्या है ? (What is Sutak Kaal)
सूतक का संबंध जन्म के समय हुई अशुद्धि से है. जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके परिवार पर सूतक लग जाता है. सूतक के समय परिवार के बच्चे की मां और परिवार वाले धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं. छटी पूजन तक बच्चे की मां रसोई घर में भी नहीं जाती.
सूतक क्यों लगता है ?
जन्म की प्रक्रिया के दौरान नाल काटा जाता है, शास्त्रों के अनुसार इसे अशुद्धि कहा जाता है. प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है, इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आकर स्नान करते हैं. ऐसे में परिवार संग 3 पीढ़ियों तक 10 दिन के सूतक का पालन किया जाता है. सूतक की अवधि हवन और पूजन के बाद ही समाप्त होती है.
सूतक कब-कब लगता है ? (Sutak Kaal Timings)
जन्म, ग्रहण काल में सूतक लगता है. इन दोनों काल में सूतक के दिन और समय का निर्धारण अलग-अलग होता है. जैसे सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लगता है वहीं चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है.
पातक क्या है ? (What is Patak ?)
गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर पातक लगता है. मृत व्यक्ति के परिजन 12 या 13 दिन तक पातक का पालन करते हैं. इसमें भी घर के सदस्यों को रसोई में जाने, पूजा-पाठ, सामाजिक और मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है.
पातक क्यों लगता है ?
गरुड़ पुराण के अनुसार मरण से फैली अशुद्धि के कारण पातक काल लगता है. मूलत: यह पातक काल सवा माह तक चलता है लेकिन दाह संस्कार से 13 दिन इसका कड़ाई से पालन करना होता है. पवित्र नदी में स्नान और ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ही पातक काल समाप्त होता है.
पातक काल कब-कब लगता है ? (Patak Kaal Timings)
मृत्यु होने पर, स्त्री का गर्भपात, पालतू जानवर की मृत्यु होने पर पातल का पालन करना चाहिए. पातक के दिन और समय का निर्धारण भी अलग होता है.
विज्ञान में सूतक और पातक का महत्व (Sutak and Patak Kaal Difference)
'सूतक' और 'पातक' सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से इसे महत्वपूर्ण माना गया है. जब बच्चे का जन्म और किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. इन दोनों ही हालातों में परिवार के सदस्यों को कई नियम पालन करने पड़ते हैं ताकि बीमारी न फैले. यही वजह है कि सूतक और पातक काल के बाद घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है.
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