Mahima Shanidev ki : नाना विश्वकर्मा के महल पर चक्रवात के हमले में माता छाया की जान बचाने में कामयाब रहे शनि को एक बार फिर पिता के आमने-सामने होना पड़ा. दरअसल इस हमले में माता छाया के हाथ पर एक विचित्र घाव हो गया, जिसका उपचार नहीं मिल रहा था. खुद देवविश्वकर्मा ने कई उपाए किए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.
एक दिन मां छाया से हाथों का उपचार पूछा तो उन्होंने कहा कि मामूली घाव है, जो ठीक हो जाएगा. मगर यह सिर्फ एक घाव नहीं बल्कि माता छाया के विलुप्त होने का संकेत था. सूर्यलोक में एक दिन आए विश्वकर्मा से सूर्यदेव ने इस घाव के बारे में पूछा तो वह स्पष्ट जवाब नहीं सके, क्योंकि उन्हें पता चल चुका था कि अब यही घाव छाया के अंत का कारण बनेगा. इस बीच शनिदेव ने इसके लिए पिता सूर्य और नाना विश्वकर्मा को जिम्मेदार ठहराते हुए माता का ख्याल नहीं रखने के लिए दुख जताया. ऐसे में आक्रोश में आए सूर्यदेव ने अपने ताप से घाव ठीक कर दिया. यह देखकर खुद माता छाया भी अचरज में पड़ गईं, क्योंकि अब तक जो घाव उनके अंत का पर्याय बन चुका था, वो अब बेहद आसानी से पूरी तरह ठीक हो चुका था.
विश्वकर्मा जानते थे, इस उपचार का कोई लाभ नहीं
सूर्यदेव ने अपने तप से भले ही शनिदेव की माता छाया का उपचार कर दिया, लेकिन खुद देव विश्वकर्मा जानते थे कि यह उपचार क्षणिक है, क्योंकि जब सूर्यदेव की वास्तविक पत्नी संध्या का तप पूरा होगा और वह सूर्यलोक लौटेंगी तब छाया को खत्म होना होगा. ऐसे में एक दिन जब शनि धर्मराज पद की प्रतियोगिता में शामिल होने इंद्रलोक गए तो कुएं को भोजन कराते हुए मां छाया का घाव पुन: उभर आया और वह निढाल हो गईं.
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