Suryavanshi Ram: हिंदू धर्म में रामायण और रामचरित मानस को श्रेष्ठ और पवित्र ग्रंथ का माना जाता है. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
राम आएंगे के चौथे भाग में हमने जाना कि, कैसे रामलला के जन्म के बाद अवधपुरी में उत्सव सा माहौल था और नगर को ध्वजा, पताका और तोरणों से सजाया गया था. तुलसीदास अपनी चौपाई में इसका सुंदर वर्णन करते हुए लिखते हैं-
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥
यानी राम के जन्म के बाद अवधपुरी ऐसे सुशोभित हो रही जैसे मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देख सकुचा गई हो. इस तरह मन में विचारकर वह संध्या बन गई. अब राम आएंगे के पांचवे भाग में जानेंगे कि रामलला के जन्म के कितने दिन बाद और किसके द्वारा हुआ उनका नामकरण.
रामलला का नामकरण
- रामलला के जन्म के बाद उनका नाम दशरथ राघव रखा गया. लेकिन बाद में रामजी का नामकरण रघु राजवंश के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने किया था. महर्षि वशिष्ठ के अनुसार, राम शब्द दो बीजाणु से मिलकर बना है. इसमें पहला अग्नि बीज और दूसरा अमृत बीज है. राम के नाम का अर्थ प्रकाश विशेष से है. इसमें राम का अर्थ प्रकाश और म का अर्थ विशेष है.
- रामजी को भगवान विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है. लेकिन सिर्फ अवतार ही नहीं बल्कि राम का नाम भी विष्णु जी से जुड़ा है. दरअसल धार्मिक पुस्तिका सहस्त्राम में भगवान विष्णु के हजार नामों का उल्लेख मिलता है, जिसमें विष्णु जी का 394वां नाम ‘राम’ है.
- रामजी के साथ ही महर्षि वशिष्ठ ने ही भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का भी नामकरण किया था.
चौपाई
कछुक दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु राती॥
नामकरन कर अवसरु जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी।।1।।
अर्थ: इस तरह से रामलला के जन्म के कुछ दिन बीत गए. दिन और रात जाते हुए जान नहीं पड़ते. तब नामकरण संस्कार का समय आया और राजा दशरथ ने ज्ञानी मुनि श्री वशिष्ठजी को बुलाया.
करि पूजा भूपति अस भाषा। धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा॥
इन्ह के नाम अनेक अनूपा। मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा॥2॥
अर्थ: मुनि की पूजा कर राजा बोले- हे मुनि! आपके मन में जो विचार हो सो नाम रखिए. मुनि ने कहा- हे राजन! इनके अनुपम नाम हैं, फिर भी मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहूंगा.
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥3॥
अर्थ: ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि है, जिसके कण से तीनों लोक सुखी हैं, उनका (दशरथ के बड़े पुत्र का) नाम ‘राम’ है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोगों को शांति देने वाला है.
रानी कौशल्या और राजा दशरथ के बड़े पुत्र का नामकरण करने के बाद महर्षि वशिष्ठ सुभद्रा और कैकयी के पुत्रों का भी नामकरण करते हैं.
बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥4॥
अर्थ: जो संसार का भरण पोषण करते हैं उनका (दशरथ के दूसरे पुत्र) का नाम भरत होगा, जिनके स्मरण मात्र से ही शत्रुओं का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध नाम ‘शत्रुघ्न’ है.
लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार॥197॥
अर्थ: जो शुभ लक्षणों के धाम श्री रामजी के अत्यंत प्यारे और संपूर्ण जगत के आधार हैं, गुरु वशिष्ठजी द्वारा उनका श्रेष्ठ नाम ‘लक्ष्मण’ रखा गया.
(राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे भगवान राम की बाल लीलाओं के बारे में)
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