कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना हवन (Havan) और यज्ञ के पूरा नहीं माना जाता और कोई भी हवन या यज्ञ में दी गई आहूति स्वाहा के बिना पूरा नहीं होती. क्या आपने भी कभी सोचा है, आखिर हवन के दौरान स्वाहा बोलना क्यों जरूरी होता है. वास्तव में अग्नि देव (Agni Dev) की पत्नि का नाम है स्वाहा. स्वाहा का मतलब है- सही रीति से पहुंचना. मंत्र पाठ (Mantra Path) करते हुए स्वाहा कहते हुए ही हवन कुंड में सामग्री अर्पित की जाती है ताकि वे देवताओं तक पहुंच सके.
ज्योतिष शास्त्रों का कहना है कि कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता जब तक हवन का ग्रहण देवता न कर लें. देवता हवन को तभी ग्रहण करते हैं जब हवन सामग्री को अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पित किया जाता है. आइए जानते हैं इससे जुड़ी कथा के बारे में.
ये है पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं और उनकी शादी अग्नि देवता के साथ हुई. अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य (आहूति देने की वस्तु) आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है. इसी के साथ दूसरी कथा है कि अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए. बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि उनके नाम से ही देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगें. इसलिए हवन के समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
तब से ही किसी भी हवन या यज्ञ के दौरान आहूति देते समय स्वाहा बोला जाता है. उस मंत्र के उच्चारण से ही देवतागण हविष्य ग्रहण करते हैं. देवता ये तभी ग्रहण कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए. तो अब जब भी आप किसी हवन या यज्ञ में बैठें स्वाहा का उच्चारण जरूर करें. तभी आपको पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो पाएगा.
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