Swami Swaroopanand: शंकराचार्य स्वरूपानंद ने 9 साल में त्याग दिया था घर, क्रांतिकारी से ऐसे बने शंकराचार्य
Shankracharya Swaroopanand Saraswati: हिंदूओं के धर्मगुरु माने जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 साल की उम्र में निधन हो गया. जानते हैं शंकराचार्य स्वरूपानंद का जीवन परिचय.
Shankracharya Swaroopanand Saraswati: हिंदूओं के धर्मगुरु माने जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 साल की उम्र में निधन हो गया. स्वरूपानंद सरस्वती जी गुजरात के द्वारका और बद्रीनाथ के ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य थे. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती श्रेष्ठ संन्यासियों में से एक थे जिन्होंने हिंदूओं को संगठित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. आइए जानते हैं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जीवन परिचय.
9 साल की उम्र में निकले धर्म यात्रा पर
स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 मध्य प्रदेश के सिवनी जिले दिघोरी गांव में हुआ था. ब्राह्मण परिवार में जन्में स्वरूपानंद जी को माता पिता ने बचपन पोथीराम उपाध्याय नाम दिया था. स्वरूपानंद जी महज 9 साल की उम्र में घर को त्याग कर धर्म की यात्रा पर निकल पड़े थे. काशी में स्वामी करपात्री महाराज के सानिध्य में वेद, और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की.
आजादी की लड़ाई में काटी जेल की सजा
शंकराचार्य ने 19 साल की उम्र में 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. यही कारण है कि उन्हें एक क्रांतिकारी साधु के रूप में जाना जाने लगा. स्वतंत्रता सेनानी बने शंकराचार्य को आजादी की लड़ाई में वाराणसी में 9 माह और मध्यप्रदेश में 6 महीने जेल की सजा काटनी पड़ी.
ऐसे बने हिंदूओं के धर्मगुरु
कहते है कि नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद ने 12 साल तक एक शिला पर तपस्या की थी. 1950 में स्वामी स्वरूपानंद ने दंड सन्यासी की दीक्षा ली और 1981 में इन्हें द्वारका और ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य बनाया गया. वे हिंदूओं के धर्म गुरु कहलाए जाने लगे. राम मंदिर निर्माण के लिए शंकराचार्य स्वरूपानंद ने लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी. गंगा सेवा अभियान में भी शंकराचार्य ने योगदान दिया था. साथ ही वे गौरक्षा आंदोलन के पहले सत्याग्रही थे.
कैसे चुनते हैं शंकाराचार्य ?
हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकारचार्य की मानी जाती है. आदि शंकराचार्य ने सनातन परंपरा को एक सूत्र से जोड़कर रखने के लिए देश की चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की थी, जिसमें गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) पूर्व में, पश्चिम में द्वारका शारदामठ (गुजरात), ज्योतिर्मठ बद्रीधाम (उत्तराखंड) उत्तर में , दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में है. आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्य शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, तब से ही इन मठों के मठाधीश को शंकराचार्य की उपाधि देते हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वाराका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे. 11 सितंबर 2022 को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली. उन्हें आश्रम में ही भू-समाधि दी जाएगी.
Indira Ekadashi 2022: इंदिरा एकादशी व्रत से होती है बैकुंठ की प्राप्ति, जानें ये कथा
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.