Swami Vivekanad: जानें, उस अद्भुत घटना के बारे में जब स्वामी विवेकानंद ने लिया था अपना फैसला वापस
Swami Vivekanad: स्वामी विवेकानंद ही भारत के एक ऐसे सन्यासी हैं जिनका संदेश आज भी पूरे विश्व को प्रेरित करता है. आइये जानें उस घटना के बारे में, जिसमें स्वामी विवेकानंद को अपना फैसला बदलना पड़ा.
Swami Vivekanad: स्वामी विवेकानंद ही भारत के एक ऐसे संन्यासी थे जिन्होनें गुलाम भारत के युवाओं को एक सपना दिखाया था. उस समय उनका दिया गया नारा कि ‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए,’ उन्होंने यह भी कहा था कि ‘यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन वास्तव में जीना उसी का माना जाता है जो दूसरों के लिए जीता है.’ उनकी इन्हीं बातों को सुनकर देश के सभी युवा उन पर फ़िदा हो गए थे. बाद में जब स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका गए तो वहां पर उनका भाषण सुनकर केवल अमेरिका ही नहीं वरन पूरा विश्व ही उनका कायल हो गया.
स्वामी के अमेरिका जाने से पहले राजस्थान में घटी थी यह अद्भुत घटना: स्वामी के जीवन की यह अद्भुत घटना विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेने के जाने से पहले राजस्थान के खेतड़ी में घटित हुई थी. बात यह हुई थी कि खेतड़ी के महाराजा के पास कोई संतान नहीं थी लेकिन स्वामी जी के आशीर्वाद से महाराजा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी. महाराजा ने इसी ख़ुशी के मौके पर स्वामी विवेकानंद जी को अपने यहां बुलाया था. इस उत्सव में कई कलाकार भी उपस्थित हुए थे. इन्हीं कलाकारों में बनारस की वेश्या भी आई हुई थी. उत्सव में जैसे ही वेश्या ने अपना नृत्य और गीत प्रस्तुत करने के लिए सभा में उपस्थित हुई वैसे ही स्वामी जी सभा कक्ष से उठकर अपने कक्ष में चले गए.
यह देखकर वेश्या को हुआ था अपार कष्ट: जैसे ही स्वामी जी सभा कक्ष से उठकर अपने कक्ष में गए तो वेश्या ने अपने मधुर कंठ से एक गीत ‘प्रभु जी मेरे अवगुण चित न धरो,’ गाया. वेश्या के इस गीत को सुनकर स्वामी जी वेश्या के पास जाकर कहा कि अब तक उनके मन में वासना का डर था जिसे अब उन्होंनें अपने मन से बाहर निकाल दिया है. और ऐसा करने के लिए उनको प्रेरणा वेश्या से ही मिली थी. स्वामी जी ने इस ज्ञान के लिए उस वेश्या को पवित्र आत्मा भी कहा था.