Swami Vivekananda, National Youth Day 2023: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1862 में बंगाल में हुआ था. उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था. स्वामी विवेकानंद की जयंती (Swami Vivekananda Jayanti 2023) यानी 12 जनवरी के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल मनाए जाने की घोषणा साल 1984 में हुई थी.


स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) युवाओं के लिए हमेशा से ही प्रांसगिक रहे हैं और उनके अनमोल विचार और कार्य युवाओं के लिए प्रेरणा है. वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. उन्होंने कम उम्र में ही ज्ञान, आध्यात्म, वेद, दर्शन शास्त्र के ज्ञान को हासिल किया और 25 वर्ष की आयु में सांसरिक मोह माया के बंधन से मुक्त होकर सन्यासी व वैराग्य जीवन को अपना लिया. लेकिन दुखद यह रहा कि उन्होंने 39 वर्ष की कम आयु में ही दुनिया को अलविदा कह दिया.


स्वामी विवेकानंद को शायद अपनी मृत्यु का आभास पहले ही हो गया था. इसलिए वे इस बात को कई बार कह चुके थे कि वे 40 बरस से अधिक आयु तक जीवित नहीं रह सकेंगे. स्वामी विवेकानंद ने अपनी बीमारी को लेकर कहा था-‘ ये बीमारियां मुझे 40 साल भी पार नहीं करने देंगी’. अपनी मृत्यु को लेकर की गई स्वामी विवेकानंद की भविष्यवाणी बिल्कुल सच निकली और उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 में हो गई, तब वे केवल 39 साल के थे. लेकिन कम उम्र में ही उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का पताका लहराया.


स्वामी विवेकानंद को एक नहीं बल्कि 31 बीमारियां थीं


कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद दमा और मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रसित थे. लेकन मशहूर बांग्ला लेखक मणिशंकर मुखर्जी का कहना था कि स्वामी विवेकानंद एक नहीं बल्कि 31 बीमारियों के शिकार थे.


लेखक ने अपनी किताब ‘द मॉन्क ऐज मैन’ में कहा है कि स्वामी विवेकानंद अनिद्रा, मलेरिया, माइग्रेन, यकृत, मधुमेह, किडनी, लिवर और दिल समेत जुड़ी पूरी 31 बीमारियों से पीड़ित थे. लेखक का यह कहना है कि स्वामी विवेकानंद की कम उम्र में मृत्यु का कारण उनकी बीमारियां ही थी.


मणिशंकर मुखर्जी अपनी किताब में एक संस्कृत का श्लोक लिखकर बताते हैं कि ‘शरीर बीमारियों का मंदिर होता है.’ साथ ही लेखक ने यह भी लिखा कि, इतनी बीमारियों का सामना करने के बावजूद भी विवेकानंद ने अपने शरीर को मजबूत बनाए रखने पर पूरा जोर दिया था. विवेकानंद अनिद्रा के रोग से बहुत परेशान थे.


इसका जिक्र करते हुए किताब में लिखा गया है कि, 29 मई 1897 में विवेकानंद ने शशि भूषण घोष के नाम एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा कि- ‘मैं अपनी जिंदगी में कभी भी बिस्तर पर लेटते ही नहीं सो पाया.’


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