Chanakya Niti : मोह करता है लक्ष्य के मार्ग को अवरुद्ध, समस्त संसार के प्रति रहें समर्पित
तक्षशिला के आचार्य चाणक्य ने सत्ता समाज और व्यक्ति के लिए नीति सूत्र दिए हैं. उनका जीवन स्वयं राजनीतिक आदर्शाें का प्रतिरूप है. आचार्य का मानना है कि मोह व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है. लक्ष्य को अवरुद्ध करता है.
आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य का बचपन अत्यंत संघर्ष पूर्ण रहा था. पिता को न्याय के लिए आवाज उठाने पर राजद्रोह झेलना पड़ा. सत्ताधीश धननंद ने उनके पिता को बंदी बना लिया. कारावास में पिता की मृत्यु हुई. मां की मृत्यु भी पिता के वियोग में हो गई. बालक विष्णुगुप्त को मगध में प्रश्रय मिलना मुश्किल हो गया तो वे तक्षशिला की ओर चल दिए. घर मकान संपत्ति और सगे संबंधियों का मोह त्याग शिक्षा का लक्ष्य लेकर वे आगे बढ़ चलेे.
आचार्य प्रकांड विद्वान होने के उपरांत तक्षशिला में ही राजनीति के आचार्य हो गए. यहां भी उन्होंने स्वयं को पद प्रतिष्ठा और संरक्षण के मोह से स्वयं को मुक्त रखा. सिंकदर के विरुद्ध गुरुकुल से विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. सिकंदर के क्षत्रपों को परास्त करने के बाद वे मगध लौटे लेकिन उनके मन में अपनी घर संपत्ति और संबंधियो के लिए कोई मोह नहीं था.
आचार्य का मगध आगमन लक्ष्योन्मुख था. वे आततायी मगध सम्राट धननंद को सत्ताच्युत करना चाहते थे. आचार्य ने मगध में मित्रों संबंधियों और घर द्वार की परवाह किए बिना चतुराई से ग्रह युद्ध का आगाज किया. उन्होंने इसमें मित्रों संबंधियों शुभचिंतकों सभी का सहयोग लिया. यह जानते हुए भी कि वे सब भी सत्ता की नाराजगी की अवस्था में खतरे में आ सकते थे. इसके बावजूद उन्होंने महान लक्ष्य के लिए उनके प्रति अपने मोह को दबाकर रखा.
आचार्य के सिद्धांतों को समझे ंतो यह स्पष्ट होता है कि लक्ष्य सर्वहितकारी जनकल्याणकारी और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाला हो तो व्यक्ति को किसी भी प्रकार के मोह में नहीं पड़ना चाहिए.