Budget Special: राम राज्य में टैक्स सिस्टम कैसा था, जानिए बजट की रामकथा
Budget 2024: आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2024-25 के लिए बजट पेश की लेकिन सही मायने में बजट कैसा होना चाहिए, टैक्स सिस्टम कैसा होना चाहिए इस बारे में तुलसीदास अपने दोहावली में बताते हैं.
Budget 2024: आज गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 के लिए बजट पेश की. संभावित अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए यह अंतरिम बजट है. नई सरकार बनने के बाद पूर्ण बजट जुलाई तक पेश किया जा सकता है.
बजट बड़े-बड़े उद्योगपतियों से लेकर आम नागरिक सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि बजट का प्रभाव सभी के जीवन पर पड़ता है. इसलिए हर किसी की निगाहें बजट पर टिकी रहती है. जनता सरकार से यह उम्मीद करती है कि बजट ऐसा पेश हो जो उन्हें लाभान्वित करे. टैक्स का अधिक बोझ न हो, मंहगाई से राहत मिले और अधिक से अधिक योजनाओं की घोषणा की जाए.
बता दें कि कर या टैक्स व्यवस्था आज नहीं बल्कि हजारों साल पुरानी व्यवस्था है. लेकिन इस व्यवस्था को सही तरीके से व्यवस्थित करना ही श्रेष्ठ बजट प्रणाली का उदाहरण है. सही मायने में बजट कैसा होना चाहिए जो जन-जन के लिए कल्याणकारी हो, इसे तुलसीदास जी के दोहावली के माध्यम से जाना जा सकता है. तुलसीदास ने अपने महाकाव्य में राम राज्य के दौरान के बजट के बारे में बताते हैं. आइये जानते हैं बजट की रामकथा-
'बरषत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ। तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ'
गोस्वामी तुलसीदास इस दोहावली में अप्रत्यक्ष रूप से संग्रह की बात करते हैं. इसमें वे कर व्यवस्था को बताने के लिए सूर्य का उदाहरण देते हैं कि, जिस तरह से सूर्य पृथ्वी से अनजाने में जल सोख लेता है और किसी को पता भी नहीं चलता. लेकिन इसी जल को इकट्ठा कर बादल के रूप में बारिश कराता है. बारिश देख लोग प्रसन्न हो जाते हैं. राजा (सरकार) को भी भानु (सूर्य) की तरह कर (टैक्स) संग्रह कर जनता के हित में कार्य करना चाहिए.
'मणि-माणिक महंगे किए, सहजे तृण,जल,नाज, तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज.'
तुलसीदास अपने लोकतंत्र में राम को व्यक्ति नहीं बल्कि आदर्श और मूल्य के तौर पर गढ़ते हैं. तुलसीदास इस दोहे में बताते हैं कि, राम राज्य में ऐसे लोगों से अधिक टैक्स वसूला जाता था, जो टैक्स देने में समर्थ होते थे. वहीं जो गरीब होते थे उनसे टैक्स नहीं लिया जाता था.
'बलि मिस देखे देवता, कर मिस मानव देव। मुए मार सुविचार हत, स्वारथ साधन एव।।'
तुलसीदास की इस दोहावली का अर्थ है कि, बलि के बहाने देवताओं की देवताई देख भी और टैक्स के बहाने शासकों को भी देख लिया. ये सह अच्छे विचार हीन होते हैं. ये मरे हुए को मारते हैं और केवल अपना स्वार्थ ही साधते हैं.
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