Mahabharat : महाभारत युद्ध के 13वें दिन गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना कर युधिष्ठिर को बंदी बनाने की योजना बनाई. पांडवों की ओर से कृष्ण, अर्जुन और अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदना आता था. इसे भेदने के लिए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु खड़े हुए, वह चक्रव्यूह भेदना तो जानते थे, लेकिन उससे निकलना नहीं. अंदर घुसते ही अभिमन्यु ने कौरव सेना में मारकाट मचा दी. इस दौरान अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध कर दिया, जिससे बौखलाएं दुर्योधन ने जयद्रथ को चक्रव्यूह के द्वार पर खड़ा कर अभिमन्यु के लौटने का रास्ता बंद कर दिया, जिसके बाद सात महारथियों ने अभिमन्यु को निहत्था कर मार डाला.


पुत्र की मौत से आहत अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले वह जयद्रथ का वध कर देंगे या खुद गांडीव के साथ आत्मदाह कर लेंगे. यही कारण रहा कि युद्ध का 14वां दिन सबसे विनाशक साबित हुआ. अर्जुन ने बेटे का बदला लेने के लिए खुद कौरव सेना के सात अक्षैहिणियों को मार डाला. इसमें कई महारथी श्रुतायु, अयुतायु, विंदा, अनुविंदा आदि मारे गए. सत्याकि और भीम ने भी प्रतिद्वंद्वी सेना को शानदार हमलों से ढेर करते गए. मगर तुलना में द्रोण और अन्य कौरव अर्जुन के संहार के आगे बौने साबित हुए.


कृष्ण ने दिन के अंत में युद्ध क्षेत्र का वर्णन किया कि 14वां दिन कौरवों के लिए विनाशकारी था. अर्जुन उस दिन कुछ और थे. वह अभिमन्यु के पिता थे, जो प्रिय पुत्र की मृत्यु से क्रोधित और चूर थे. यह दिन अर्जुन की वीरता की भयानक प्रदर्शनी बनी और प्यारे, वीर पुत्र अभिमन्यु को श्रद्धांजलि देने के लिए उन्होंने कौरवों को हार की कगार पर पहुंचा दिया. 

कृष्ण की मदद से जयद्रथ का वध हुआ
14वें दिन अर्जुन के रौद्र रूप के बावजूद कौरव जयद्रथ को छुपाकर बचाने में कामयाब रहे, उन्हें पता था कि अगर जयद्रथ का वध नहीं हुआ तो अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा अनुसार आत्मदाह कर लेंगे, जिसके बाद पांडवों को हराना खेल हो जाएगा. इस दिन शाम ढलते ही अर्जुन आत्मदाह की तैयारी करने लगे और वेदी सजने लगी. इसी बीच कृष्ण की कृपा से बादलों के बीच से सूर्य देव निकल आए और खुशी से उछल रहे जयद्रथ को कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने वहीं ढेर कर दिया.


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