Jagannath Yatra : प्रभु जगन्नाथ की यात्रा परंपराओं के लिहाज से देश की सबसे बड़ी रथ यात्रा है. भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ यह इकलौती यात्रा मानी जाती है. जगन्नाथ यात्रा प्रभु के मंदिर से शुरू होती है और करीब दो किमी का सफर तय करके गुंडिचा मंदिर पहुंचती है. इस दौरान यात्रा के पहले, यात्रा के दौरान और यात्रा की दोबारा वापसी के बीच कई रोचक रस्में होती हैं.


बुखार के चलते ओसरघर में रुकते हैं भगवान 
प्रभु जगन्नाथ को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर बलराम भइया और सुभद्रा बहन संग रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के स्नान मंडप में लाकर 108 कलशों से शाही स्नान कराया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस स्नान से प्रभु जगन्नाथ को ज्वर यानी बुखार आ जाता है, इसके चलते वे पूरे 15 दिन ओसर घर कहे जाने वाले विशेष कक्ष में निवास करते हैं. इस दौरान मंदिर के प्रमुख सेवक, वैद्यों के सिवाय कोई व्यक्ति प्रभु को देख नहीं सकता है. इस बीच मंदिर में महाप्रभु प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित कर पूजा अर्चना होती है.


नव यौवन नैत्र उत्सव 
15 दिन बाद जब भगवान स्वस्थ होकर ओसरघर से निकलते हुए भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नव यौवन नैत्र उत्सव कहा जाता है. द्वितीया को श्रीकृष्ण, बलरामजी और बहन सुभद्राजी के साथ राजमार्ग पर आकर रथ से नगर भ्रमण शुरू करते हैं. रथयात्रा मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक पहुंचती है. गुंडिचा राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं, जिन्होंने गुफा में राजा इंद्रद्युम्न ब्रह्मालोक से लौटने तक बैठकर तपस्या की, जिसके चलते वह देवी बन गईं.  उनके तप से ही इंद्रद्युम्न नारदमुनि संग ब्रह्मलोक की यात्रा करके समय पर लौटे थे.


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