Jagannath Yatra: पुरी के भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा पूरे विश्व में मशहूर है. इस दौरान श्रीकृष्ण भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के घर रथ से गुंडीचा मंदिर जाते हैं और सात दिन विश्राम करने के बाद लौटते हैं. इस रथ यात्रा के लिए दुनिया भर से लोग पुरी पहुंचते हैं, जो लोग रथ खींचते हैं, वे खुद को भाग्यशाली मानते हैं. 


इस मंदिर के आश्यर्चों में शुमार है कि इसकी रसोई में चूल्हे पर एक के ऊपर एक सात बर्तन रखे जाते हैं, लेकिन भोजन पहले सबसे दूर और ऊपर वाले बर्तन में पकता है. मंदिर में भक्तों के लिए प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता है. यहां वर्ष भर सामान्य मात्रा में ही प्रसाद बनता है, लेकिन भक्तों की संख्या 1000 हो या एक लाख यह कभी कम नहीं होता. मंदिर का कपाट बंद होते ही बचा प्रसाद खत्म हो जाता है. 500 कुक रोज 300 सहयोगियों के साथ यह प्रसाद तैयार करते हैं.


400000 वर्ग फुट के दायरे में बने इस मंदिर के शिखर पर चक्र-ध्वज लगे हैं, जिनका विशेष महत्व है. अष्टधातु से बने चक्र को नीलचक्र भी कहते हैं. ओडिशा में होने के चलते कलिंग शैली में बने इस मंदिर को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया जिसे अनंग भीम देव ने पूरा किया.


गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ पुरी में कई साल रहे थे, इस वजह से मंदिर का गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में महत्व है. मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है. कहा जाता है कि जगन्नाथ पुरी में कहीं से भी मंदिर पर लगा सुदर्शन चक्र देखा जा सकता है. मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके आसमान से कोई भी पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है.


ये भी पढ़ें-


Hanuman Ji: मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ नकारात्मक ऊर्जा को करता है नष्ट


सफलता की कुजी: गलत आदतों के कारण जीवन में देखना पड़ता है धन का संकट, इन आदतों से मिलती है लक्ष्मी जी की कृपा