Sawan 2021 : स्तंभेश्वर महादेव मंदिर अपने रहस्यों के चलते श्रद्धालुओं के लिए हमेशा रोमांच का कारण रहा है. अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित इस मंदिर को करीब 150 साल पहले खोजने का दावा किया जाता है. हालांकि, मंदिर का उल्लेख महाशिवपुराण के रुद्रसंहिता में है. कहा जाता है कि मंदिर के शिवलिंग का आकार चार फुट ऊंचा और दो फुट चौड़े व्यास का है. इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि यह हर दिन सुबह और शाम को दो बार पल भर के लिए गायब हो जाता है और कुछ देर बाद ही वापस एक बार फिर अपनी जगह पर दिखने लगता है. वैज्ञानिक इसका कारण अरब सागर में उठने वाले ज्वार-भाटे को मानते हैं, लेकिन मान्यता है कि यह शिवलीला है. इस कारण श्रद्धालु मंदिर के शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते हैं, जब समुद्र की लहरें पूरी तरह शांत हों. ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह जलमग्न हो जाता है. 


श्रद्धालुओं को मिलता है दर्शन के समय का पर्चा
यहां आने वाले सभी श्रद्धालु को एक खास पर्चा दिया जाता है, जिसमें यहां ज्वार-भाटा आने का सही समय दर्ज होता है, क्योंकि गलत समय पर आने की सूरत में आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है. मंदिर से जुड़ी एक और पौराणिक कथा है. इसके मुताबिक तारकासुर राक्षस ने शिवजी की कठोर तपस्या की. प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान मांगने को कहा तो तारकासुर ने कहा कि उसे सिर्फ शिवजी का पुत्र ही मार पाएगा. वह भी सिर्फ छह दिन की आयु का. शिवजी वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए. इस वरदान से घबराए देवता शिवजी के पास गए. उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने श्वेत पर्वत कुंड से छह मस्तक, चार आंख और बारह हाथ वाला पुत्र उत्पन्न किया, इसका नाम कार्तिकेय रखा गया. इसके बाद कार्तिकेय ने छह दिन की उम्र में तारकासुर का वध किया, मगर जब कार्तिकेय को पता चला कि तारकासुर शिव भक्त था तो वे व्यथित हो गए. इस पर विष्णुजी ने कार्तिकेय से कहा कि वहां शिवालय बनवा दें. इससे मन शांत होगा. भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया और देवताओं ने मिलकर सागर संगम तीर्थ पर विश्वनंद स्तम्भ की स्थापना की, जिसे कालांतर में स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना गया.


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