कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद 1 दिसंबर से मार्गशीर्ष जिसे अगहन का महीना भी कहा जाता है का आगाज़ हो चुका है. ये महीना भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना के लिए विशेष माना जाता है. कहते हैं जिस तरह कार्तिक के महीने में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है ठीक उसी तरह मार्गशीर्ष के महीने में नंदलाल की आराधना श्रेष्ठ फलदायी होती है. इस पूरे महीने दोनों समय कृष्ण जी की विशेष रूप से पूजा अर्चना करनी चाहिए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खास महीने शंख की पूजा का भी विशेष विधान होता है.  


जी हां.. शंख की पूजा करने से मन में बसी हर कामना को पूरा किया जा सकता है लेकिन इसके लिए जरुरी है कि पूजा पूरे विधि विधान से की जाए. तो चलिए बताते हैं कि इस महीने क्यों इतना खास होता है शंख है और कैसे करें इसकी पूजा. 


लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है शंख


शायद आप ये बात ना जानते हों कि लेकिन शंख को लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में माना जाता है. और इसीलिए आपने देखा होगा कि लक्ष्मी जी की हर पूजा में शंख अनिवार्य होता है. बिना इसके लक्ष्मी देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है. 


मार्गशीर्ष में क्यों पूजा जाता है शंख


लेकिन आखिर मार्गशीर्ष के महीने में शंख की पूजा से श्रीकृष्ण क्यों प्रसन्न होते हैं ये एक बड़ा सवाल है. इसके पीछे का कारण हम आपको बताते हैं. दरअसल, कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पैरों में 19 अलग अलग तरह के चिन्ह मौजूद थे जिनमे से एक शंख भी था. शंख उनके तलवे पर अंगूठे के नीचे की ओर मौजूद था. जो शुभता का प्रतीक माना जाता है. अब चूंकि मार्गशीर्ष का महीना श्रीकृष्ण को अति प्रिय है इसीलिए इस महीने में उनसे जुड़े शुभ चिन्हों की पूजा भी महत्वपूर्ण मानी गई है.  


इस विधि से करनी चाहिए पूजा


अगर आप भी श्रीकृष्ण रूपी शंख की पूजा करना चाहते हैं तो सुबह सवेरे स्वच्छ वस्त्र धारण कर एक लकड़ी की चौकी लें और उस पर स्वच्छ व नया कपड़ा बिछा लें. उस कपड़े के ऊपर एक थाली रखकर उसमें शंख रखें व कच्चे दूध में जल मिलाकर उससे उसे स्नान करवाएं. उसे पोंछकर चांदी का वर्क उस पर लगा दें  दीपक जलाएं, शंख पर एकाक्षरी मंत्र लिखकर उसे सामर्थ्य अनुसार चांदी या तांबे के पात्र में स्थापित करें. टीका लगाए, अक्षत चढ़ाए. और फिर अंत में भोग लगाकर पूजा करें. 


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