Putrada Ekadashi : पुत्रदा एकादशी पर तुलसी पत्र तोड़ने का जानिए विधान
भगवान विष्णु को समर्पित पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा इस बार 18 अगस्त बुधवार को पड़ रही है. यह व्रत संतान प्राप्ति और उसकी उन्नत्ति की कामना के लिए रखा जाता है.
Putrada Ekadashi : भगवान विष्णु को समर्पित पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा इस बार 18 अगस्त बुधवार को पड़ रही है. यह व्रत संतान प्राप्ति और उसकी उन्नत्ति की कामना के लिए रखा जाता है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा, नियम और विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी व्रत पूरा करता है उसे योग्य संतान मिलती है. तुलसी में देवता के सार हैं. तुलसी सागर मंथन से निकली थीं. इस दिन श्रीहरि को तुलसी पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है, लेकिन इसे पौधे से तोड़ने और प्रभु को चढ़ाने के लिए भी अलग विधान है. ऐसे में मालूम होना जरूरी है कि तुलसी का प्रयोग कब और कैसे करना है. साथ ही किन-किन तिथियों और परिस्थितियों में तुलसी को तोडऩा वर्जित है.
कब नहीं तोड़नी चाहिए तुलसी
ग्रहण के समय तुलसी की पत्ती चीजों को शुद्ध करने में प्रयोग होती है. मगर चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण में तुलसी तोड़ना वर्जित है. दिनों की बात करें तो रविवार और मंगलवार को तुलसी पत्र तोड़ना निषेध है. एकादशी, द्वादशी और संक्राति के दिन भी तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए. बिना स्नान तोड़ी गई तुलसी को ईश्वर भोग में स्वीकार नहीं करते. ऐसे में स्नान के बाद ही तुलसी पत्र तोड़ना चाहिए. सोहर और सूतक यानी बच्चे के जन्म और किसी की मृत्यु होने पर भी परिवार के लोग तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए.
इसलिए बना विधान
तुलसी निरंतर बढ़ती रहे, इसको ध्यान में रखकर तुलसी तोड़ने का विधान बनाया गया है. पत्ती तोड़ने के बजाए पौधे के आगे के हिस्से यानी तुलसी दल तोड़ना चाहिए. ऐसा करने से पौधा तेजी से बढ़ता है. तुलसी दल के साथ मंजरी भी तोड़ लेनी चाहिए. ऐसा तुलसी दल विष्णु जी विशेष पसंद है, इसके पीछे भी पौधे का विकास छिपा है. जब आप मंजरी के साथ तुलसी दल तोड़ते हैं तो मंजरी के बीज खुद ब खुद टूट कर मिट्टी में गिर जाते हैं और उनसे नए पौधे निकलते हैं.
नहीं होता इसका विचार
विष्णु के प्रिय दिन एकादशी और रविवार को जब आप तुलसी तोड़ नहीं सकते तो उनको अर्पित कैसे करेंगे? इस सवाल का जवाब ये है कि तुलसी पूरे 11 दिन तक गंगाजल से धोकर कभी भी विष्णु को अर्पित की जा सकती. इस दौरान उसे बासी नहीं माना जाता.
इनको नहीं भाती तुलसी
तुलसी विष्णु को प्रिय है. सालीग्राम हमेशा तुलसी के नीचे विराजते हैं. मगर कई देवी-देवता ऐसे भी हैं जिनपर तुलसी नहीं चढ़ती. शिवजी, गणेश और भैरव जी इसमें शामिल हैं. भोले नाथ पर जहां बेलपत्र, धतूरा चढ़ता वहीं गणेश जी को दूर्बा भाती है.
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