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देवी सीता के बारे में ये 7 जानकारियां कर देंगी आपको हैरान
देवी सीता के बारे में अभी भी कई ऐसी बाते हैं जिनके बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते. इसके अलावा ग्रंथों में उनके संबंध अलग-अलग बातें कही गई हैं.
देवी सीता के बारे में हम सभी ने पढ़ा होगा, टीवी सीरियलों में देखा होगा लेकिन इसके बावजूद उनके बारे में कई ऐसी जानकारियां जो अधिकांश लोगों को नहीं पता. इतना ही नहीं वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में उनको लेकर अलग-अलग जानकारियां सामने आती हैं. कुछ ऐसी ही जानकारियों के बारे में हम आपको बताते हैं जो शायद आपको चौंका दे...
वाल्मीकी रामायण में नहीं है सीता स्वयंवर का उल्लेख
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में सीता का उल्लेख कुल 147 बार आता है. मानस में सीता स्वयंवर का भी जिक्र है लेकिन वाल्मीकि रामायण में सीता स्वयंवर का जिक्र नहीं आता है. तुलसीदास ने लिखा है कि मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी राम-सीता का विवाह हुआ था.
क्या माता सीता का हुआ था बाल विवाह
वाल्मीकि रामायण में सीता के विवाह के बारे में बिल्कुल अलग जानकारी मिलती है. वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कहा गया है कि देवी सीता का बाल विवाह हुआ था. जानकारी मिलती है कि विवाह के समय उनकी आयु मात्र 6 साल थी.
इतनी उम्र में वनवास को गई थीं माता सीता
देवी सीता सिर्फ 18 साल की थीं जब वह भगवान राम के साथ बनवास को चली गई थीं. उनके बारे में एक जानकारी यह भी मिलती है कि शादी के बाद वह कभी अपने मयके जनकपुर नहीं गई. हालांकि बनवास पर जाने से पहले राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता से जनकपुर चलने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने मना कर दिया था.
सीता हरण को लेकर भी अलग-अलग विवरण
सीता स्वयंवर की तरह ही सीता हरण के बारे में तुलसीदास और वाल्मीकि रामायण में अलग-अलग विवरण मिलता है. वाल्मीकि रामायण के मुताबिक रावण ने सीता हरण कर दिव्य रथ में उन्हें लंका ले गया था जो की सोने से बना था जबकि मानस के मुताबिक रावण पुष्पक विमान से सीता को लंका लेकर गया था.
कुल इतने दिन रहीं लंका में
माता सीता को लंका में कुल 435 दिन रहना पड़ा था. जानकारी के मुताबिक जव वह लंका से लौटी थीं तो उनकी उम्र 33 साल थी. एक जानकारी यह भी है कि रावण के पास सीता नहीं बल्कि उनकी प्रतिछाया थी. इस दौरान उनका असली रूप अग्निदेव के पास रहा.
माता सीता को इसलिए लंका में नहीं लगती थी भूख प्यास
वाल्मीकि रामायण में वर्णन आता है कि सीता माता ने लंका में कुछ भी खाया-पिया नहीं था. इसकी वजह थी कि सीता हरण के बाद इंद्र ने उन्हें एक ऐसी खीर बनाकर खिलाई जिसके बाद उन्हें भूख प्यास नहीं लगती थी. हालांकि तुलसीदास ने ऐसा कोई वर्णन नहीं किया है.
सशरीर अपने धाम लौटी थीं माता सीता
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक सीता ने वाल्मीकि आश्रम में जब लव-कुश को जन्म दिया तो उस समय देवर शत्रुघ्न वहीं मौजूद थे. श्री राम द्वारा जलसमाधि लेकर देह त्यागने की जानकारी मिलती है जबकि सीता माता जब धरती की गोद में समाई तो सशरीर ही अपने धाम लौट गईं.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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