ज्योतिष शास्त्र में राशियों के तुल्य ही नक्षत्रों का महत्व होता है. शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं. साथ ही, भाग्यदाता न्याय के देवता शनि ग्रह पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और उत्तरा-भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी भी हैं.


पुष्य नक्षत्र को अत्यंत शुभ और विशेष फलदायि नक्षत्र माना जाता है. गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने पर गुरु-पुष्य की संज्ञा दी जाती है. इस दिन स्थायित्व से जुड़े कार्य किये जाते हैं. जैसे- धन संपत्ति संचय एवं भूमि भवन की खरीदी आदी. शनिदेव को स्वयं यह नक्षत्र अतिप्रिय है.


अनुराधा नक्षत्र श्रेष्ठता और सौंदर्य को बढ़ाने वाला है. वृश्चिक राशि में आता है. वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह हैं. इस नक्षत्र के प्रभाव से शनिदेव मंगलवार को हनुमान जी की पूजा से भी शांत होते हैं. कृपा बरसाते हैं. ऐसे जातक ऊर्जा और उत्साह से भरे होते हैं.


उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मीन राशि में आता है. यह गुरु की राशि है. गुरु और शनि के प्रभाव से उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातक उदार हृदय होते हैं. अकादमिक शि़क्षा में बेहतर करते हैं. धर्म और अध्यात्म में रुचि लेते हैं.


इन तीनों नक्षत्रों में चंद्रमा की उपस्थिति के दौरान शनिदेव के उपाय लेना, दान करना और मंत्र जाप करना अति प्रभावकारी होता है. शनिदेव जनता के कारक हैं. जनसेवा से शनिदेव सबसे शीघ्रता से प्रसन्न होते हैं.


शनि के तीनों नक्षत्र जल तत्व राशियों में आते हैं. जल धनधान्य और वैभवशाली होने का प्रतीक हैं. इन नक्षत्रों के जातक शनिकृपा से धनवान और इच्छित सफलता को प्राप्त होते हैं.