Makar Sankranti 2020: क्या है खरमास और क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति नहीं जानते तो यहां पढ़ें
Makar Sankranti 2020: सूर्य जब गुरु की राशि धनु या मीन में भ्रमण करते हैं तो इस समय को खरमास कहा जाता है. वहीं सूर्य भगवान मकर संक्रांति के दिन अपने दोनों घोड़ों को वापिस रथ में जोड़ लेते हैं. इसके बाद उनके रथ की रफ्तार फिर तेज हो जाती है.
नई दिल्ली: खरमास के चलते जो लोग शुभ कार्य नहीं कर पा रहे हैं उनके लिए खुशखबरी है. इसी माह खरमास काल का समय समाप्त हो रहा है. खरमास के समाप्त होने के बाद शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत होती है. आइए जानते हैं कि कब समाप्त हो रहा है खरमास-
खरमास को लेकर मान्यता है कि इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. बीते वर्ष 16 दिसम्बर 2019 से खरमास का आरंभ हुआ था. तभी से मांगलिक कार्य वर्जित हो गए थे. 15 जनवरी 2020 को खरमास काल समाप्त हो रहा है. तो एक बार फिर से शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे.
सूर्य जब गुरु की राशि धनु या मीन में भ्रमण करते हैं तो इस समय को खरमास कहा जाता है. खरमास को लेकर कई तरह की धारणाएं हैं कि कुछ लोग इसे बुरा मानते हैं कि लेकिन ऐसा है नहीं, शास्त्रों के मुताबिक इस समय काल में व्यक्ति को अपना अधिक से अधिक आध्यात्म में लगाना चाहिए. इस समय मन व्यक्ति का चंचल होता है. इसलिए इस मन को नियंत्रित करने के लिए साधना और पूजा अर्चना का सहारा लिया जाना चाहिए. जानकारों का मानना है कि इस दौरान की गई साधना से ऊर्जा में वद्धि होती है. इस माह में कल्पवास विधान को अधिक महत्व दिया गया है.
खरमास का नाम कैसे पड़ा इसके पीछे भी कई कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार खर का अर्थ गर्दभ यानी गधे से है. सूर्य अपने सात घोड़ों पर सवार रहते हैं. ये घोड़े कभी रुकते नहीं है. लगातार दौड़ते रहते हैं. लेकिन सूर्य के ये सातों घोडे़ हेमंत ऋतु में जब थकने लगते हैं तो एक तालाब के निकट रुक जाते हैं. लेकिन जैसे ही जल पीने के लिए रुकते हैं तभी उन्हें अपनी जिम्मेदारी याद आ जाती है कि उन्हें तो रुकना ही नहीं है. क्योंकि अगर वे रूक जाएंगे तो सृष्टि पर कोई संकट न आए. इसलिए सूर्य भगवान तालाब के पास खड़े दो गधों को रथ में जोड़ देते हैं और यात्रा जारी रखते हैं.
ये गधे मंद गति से पूरे पौष मास में यात्रा करते रहते हैं. जिस कारण सूर्य का तेज कमजोर हो जाता है. सूर्य भगवान मकर संक्रांति के दिन अपने दोनों घोड़ों को वापिस रथ में जोड़ लेते हैं इसके बाद उनके रथ की रफ्तार फिर तेज हो जाती है. इसीलिए इस दिन के बाद सूर्य की किरणों का तेज पृथ्वी पर बढ़ने लगता है. सूर्य का तेज बढ़ने के साथ ही खेतों में खड़ी फसलें पकने लगती हैं. दिन बड़ा और रात छोटी होने का क्रम शुरू हो जाता है. कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य अपनी पूरी ताकत के साथ ब्रह्मांड में विचरण करने लगते हैं.