कहते हैं भगवान शिव स्वयंभू हैं जिनका ना कोई आदि है और ना ही कोई अंत. तभी तो इन्हें अमर अजर अविनाशी कहा जाता है. लेकिन अक्सर शिव भक्तों के मन में ये जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती रहती है कि आखिर भगवान शिव का जन्म हुआ कैसे..? कैसे वो उत्पन्न हुए? उनके जन्म से जुड़े रहस्य को जानने की इच्छा शिव भक्तों को अवश्य रहती है. तो चलिए बताते हैं आपको पुराणों में वर्णिक भोलेनाथ के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक बातें


जन्म से जुड़ी है यह कथा



भगवान शिव के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक के मुताबिक - एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच खुद को सर्वश्रेष्ठ बताने को लेकर जमकर बहस हुई. वो बहस कर ही रहे थे कि तभी उन्हें एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया. जिसका कोई ओर व छोर नज़र नहीं आ रहा था. तभी एक आकाशवाणी हुई और दोनों को खंभे को पहला व आखिरी छोर ढूंढने की चुनौती दी गई. तब ब्रह्मा ने एक पक्षी का रूप धारण किया तो भगवान विष्णु ने वराह का. और दोनों खंभों का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए निकल पड़े. कड़े प्रयास के बाद भी दोनों असफल रहे. और हार मानकर जब लौटे तो वहां भगवान शिव को पाया. तब उन्हें अहसास हुआ कि ब्रह्माण्ड का संचालन एक सर्वोच्च शक्ति द्वारा हो रहा है. जो भगवान शिव ही हैं. इस कथा में खंभा भगवान शिव के कभी न खत्म होने वाले स्वरूप को दिखाता है. यानि शिव अनंत हैं.


कूर्म पुराण में मिलता है ये ज़िक्र



इस कूर्म पुराण में भी शिव के जन्म से जुड़ी एक कथा मिलती है जिसके मुताबिक - सृष्टि को उत्पन्न करने में ब्रह्मा जी को उसके संचालन में कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे.तब ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों का जन्म हुआ था और मुख से रूद्र यानि शिव का. इसीलिए भूत-प्रेतों को भोलेनाथ का सेवक माना गया है


विष्णु के तेज से उत्पन्न हुए शिव - विष्णु पुराण


विष्णु पुराण में भी भगवान शिव के जन्म के बारे में वर्णन मिलता है. इसमें कहा गया है कि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए. सिर्फ जन्म ही नहीं बल्कि पौराणिक ग्रंथों व पुराणों में शिव से जुड़ी अनेकों कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि शिव के 11 अवतार होते हैं. जिनके उत्पन्न व प्रकट होने की अलग अलग कथाएं हैं.