Janmastami : जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण की तीन समय पूजा की जाती है. इसकी शुरुआत सूर्योदय से पहले उठने के साथ स्नान के बाद होती है, दूसरी पूजा देवकी सूतिकागृह निर्माण के दौरान की जाती है, जिसमें कृष्ण के साथ माता देवकी की भी पूजा अर्चना होती है. इसके बाद तीसरी पूजा मध्यरात्रि 12 बजे कान्हा के जन्म के बाद विधि-विधान से पूजा होती है. इस बार 30 अगस्त की रात 11 बजकर 59 मिनट से रात 12 बजकर 44 मिनट तक जन्माष्टमी पूजा का मुहूर्त है.


पूजा विधि
सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर कान्हा की मूर्ति एक पात्र में रखिए. हाथों को अच्छी तरह से धो और कपड़े से पोछकर अब दीपक और धूपबत्ती को साथ जलाएं. श्रद्धा की मुद्रा में बैठकर कान्हा जी का आवाहन करें कि, 'हे भगवान् कृष्ण! कृपया पधारकर पूजा ग्रहण कीजिए. इसके बाद कृष्णजी को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं. 


श्रृंगार विधि
श्रीकृष्णजी को वस्त्र पहनाकर श्रृंगार शुरू करें. पहले उन्हें दीप-धूप दिखाएं. अष्टगंध चन्दन या रोली का तिलक लगाएं. साथ ही थोड़े अक्षत भी तिलक पर लगाना शुभ होगा. इसके बाद माखन मिश्री आदि भोग सामग्री अर्पित कर तुलसी पत्र विशेष रूप से चढाएं. पीने के लिए गंगाजल भी अर्पित करें, या पात्र में रख दें. इसके बाद भगवान का ध्यान करें कि वह बच्चे के रूप में पीपल पत्ते पर लेटे हैं, शरीर में अनंत ब्रह्माण्ड हैं और वे अंगूठा चूस रहे हैं. विसर्जन के लिए फूल, चावल चौकी पर छोड़ते हुए प्रार्थना करें कि हे भगवान पूजा में पधारने के लिए धन्यवाद. मेरी पूजा-जप ग्रहण कर पुनः दिव्य धाम को पधारिए.


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