वाग्देवी सरस्वती की स्वरों की देवी हैं. ब्रह्मा जी ने मौनी संसार को मधुर ध्वनियों से झंकृत करने मां वीणापाणी आह्वान किया. उनके अवतरण से समस्त चराचर गंुजाय मान हो उठा. माघ शुक्ल पंचमी की वागीश्वरी जयंती मनाई जाती है. विद्या बुद्धि ज्ञान और स्वर की अधिष्ठात्री मां शारदा की द्वादश नामयुक्त स्तुति का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के वाणी दोष दूर हो जाते हैं. वार्तालाप मंे आत्मविश्वास बढ़ता है. स्वर की समझ साधना बढ़ती है.


वाक् शक्ति विवर्धक सरस्वती स्तुति-
सरस्वतीं शारदां च कौमारी ब्रह्मचारिणीम्।
वागीश्वरीं बुद्धिदात्री भारतीं भुवनेश्वरीम्।।
चंद्रघंटां मरालस्थां जगन्मातरमुत्तमाम्।
वरदायिनी सदा वन्दे चतुर्वर्गफलप्रदमाम्।।


द्वादशैतानि नामानि सततं ध्यानसंयुतः।


यः पठेत् तस्य जिह्वाग्रे नूनं वसति शारदा।।


एक हाथ में माल और एक हाथ पुस्तक के साथ दो हाथों में वीण थामें मां सरस्वती की वंदना प्रत्येक सांस्कृतिक कार्यक्रम से पहले की जाती है. उक्त वाक् शक्ति विवर्धक सरस्वती स्तुति का सूर्याेदय और सायंकाल में पाठ करने से हर आयु वर्ग के लोगों को लाभ प्राप्त होता है. इसमें कुल तीन पद हैं। पहला पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. पहले पद में ही अधिकतर नाम मां सरस्वती के समाहित हो जाते हैं. इस स्तुति को श्रद्धाभाव से शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करंे. इससे हकलाने और अटकने जैसे दैहिक विकार भी दूर हो जाते हैं.