Tirupati Laddu row: आंध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) देशभर के करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. हाल ही में मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले लड्डुओं में पशु वसा (Animal Fat) की मिलावट की बात सामने आई. बताया जा रहा है कि, तिरुपति बालाजी के लड्डू में जिस घी इस्तेमाल हो रहा था उसमे गौ मांस (Beef) भी मिश्रित था.


उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण (Pawan Kalyan) ने मीडिया को बताया कि, रामलला के प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir) के समय, तिरुपति बालाजी से एक लाख लड्डू अयोध्या (Ayodhya) भेजे गए थे. इसका मतलब यह है कि लगभग सभी लोग इस अधर्म से सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से दूषित हुए हैं.


हिंदू धर्म में गाय का स्थान है सर्वोपरि


हालाकि यह कृत्य आपने जान बूझकर नहीं किया इसलिए आपका पाप बहुत ही कम मात्रा में गिना जाएगा. लेकिन गलती पता चलने पर इसका प्रायश्चित जरूर करना चाहिए. क्योंकि हिन्दू धर्म में गाय का स्थान सबसे उच्च कोटि का माना जाता है. शास्त्रों (Shastra) के अनुसार गाय में 33 कोटि देवता वास करते हैं और हम गाय को देवता तुल्य पूजते हैं. इसलिए गाय की हत्या करना और उसके मांस का भक्षण करना दंडनीय कार्य है, जोकि महापाप के समान. इसलिए इस पाप से छुटकारा पाने के लिए प्रायश्चित (Atonement) करना पड़ेगा जो हमारे शास्त्रों में वर्णित है. चलिए शास्त्रों से प्रायश्चित की प्रकिया जानते हैं-


प्रायश्चित के लिए चान्द्रायण व्रत, पराक व्रत और पादकृच्छ्र व्रत की विधि


चंद्रायण व्रत (Chandrayan Vrat):– चंद्रायण व्रत के प्राचीन व्रत है, जोकि चंद्रमा की कलाओं से जुड़ी है. धार्मिक मान्यता है कि इसे करने से सभी तरह के पापों का प्रायश्चित हो जाता है. इसमें कृष्ण पक्ष में एक-एक ग्रास भोजन घटाते हुए शुक्लपक्ष में एक-एक ग्रास भोजन बढ़ाना होता है और प्रतिदिन तीनों समय स्नान करना चाहिए. या पहले शुक्लपक्ष में प्रतिदिन एक-एक ग्रास बढ़ाएं और कृष्णपक्ष में नित्य एक-एक ग्रास घटाएं. अमावास्या को बिलकुल भोजन न करें. यह चंद्रायण व्रत की विधि है. व्रत के अंत में यज्ञ आदि कराएं और दान करें.


पराक व्रत (Paraak Vrat):– यह एक कठिन व्रत प्रक्रिया है, जिसमें 12 दिनों तक व्रत रखा जाता है. इसे निरंतर बारह अहोरात्र का उपवास करने और 2, 3 या 5 गोदान या तन्मूल्य कल्पित द्रव्य देने से 'पराक व्रत' सम्पन्न होता है. पराक व्रत का उल्लेख मनुस्मृति, बोधायन धर्म सूत्र, याज्ञवल्क्य स्मृति, शंख स्मृति, अत्रि स्मृति, अग्नि पुराण, विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है.


पराको नाम कृच्छ्रोऽयं सर्वपापापनोदनः


अर्थ है: इंद्रिय निग्रह पूर्वर स्थिर मन से 12 दिनों तक भोजन का परित्याग कर इस व्रत को करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं.


पादकृच्छ्र व्रत – इसमें तीन दिनों तक उपवास रखने का विधान है. एक दिन प्रातःकाल, एक दिन सायंकाल, एक दिन अयाचित भोजन और एक दिन उपवास करने से 'पादकृच्छ्र' व्रत संपन्न होता है.


इसके अलावा एक और पर्याय है तप्तकृच्छ्र व्रत. अग्नि पुराण अध्याय क्रमांक 168 के अनुसार, गौ मांस खाने पर अपको तप्तकृच्छ्र व्रत करना चाहिए. गौतम स्मृति में भी यही वर्णित है (तप्तकृच्छ्रे चरन् विप्रो जलक्षीरघृतानिलान् )।


तप्तकृच्छ्र व्रत का विधान- 3 दिन 6 पल (350 ग्राम) गर्म जल, 3 दिन 3 पल गर्म दूध, 3 दिन 1 पल गर्म घी और तीन दिन गर्म वायु (उबलते हुए जलकी भाप) पीने से; या 3 पल गर्म जल, 2 पल गर्म दूध और 1 पल गर्म घी 3-3 दिन पीने और 3 उपवास करने से अथवा तीनों को एक साथ गर्म करके 1 दिन पीने और 1 दिन उपवास करने से 'तप्तकृच्छू होता है.


यदि गोमांस अनजाने में, छल से या बल से खिला दिया गया हो तो एक विधान यह है कि मात्र शुद्धि करके भी शुद्ध हो सकते हैं. बल से करवाए गए उन सभी कार्यों को शास्त्रों में अमान्य माना गया है.


(बलाद्दत्तं बलाद् भुक्तं बलाद्यच्चापि लेखितम् । सर्वान्वलकृतानर्थानकृतान्मनुरब्रवीत् ॥ 168॥)। लेकिन यदि मन में प्रायश्चित करने का विचार आ जाए (क्योंकि प्रायश्चित वैसे भी किया जा सकता है) तब तप्तकृच्छ्र व्रत करना चाहिए या देवल स्मृति अनुसार जो प्रायश्चित की विधि जो इस लेख में बतलाया है उसका पालन करें.


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