Guru Pradosh Vrat 2023: आज गुरु प्रदोष व्रत पर कर लें ये काम, शत्रु को पराजित करने में होंगे कामयाब
Guru Pradosh Vrat 2023: आज 19 जनवरी 2023 को प्रदोष व्रत है. गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले व्रत है. गुरु प्रदोष व्रत की कथा-महत्व के बारे में आइए जानते हैं.
Guru Pradosh Vrat 2023: माघ महीने के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 19 जनवरी 2023, गुरुवार यानी कि आज है. प्रदेष व्रत शिव को समर्पित है और गुरुवार का भगवान विष्णु को, दोनों ही देवताओं की पूजा से सुखी वैवाहिक जीवन और भौतिक सुख का वरदान मिलता है, साथ ही शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है.
प्रदोष व्रत में शाम के समय भोलेनाथ का रुद्राभिषेक करना उत्तम माना जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले व्रत है. कहते हैं जो साधक गुरु प्रदोष व्रत में इस कथा का श्रवण करता है उसे शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत की कथा.
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यों के राजा वृत्रासुर ने एक बार स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया था. देवताओं की सेना ने वृत्रासुर की सेना को युद्ध में हरा दिया, दैत्य असुर के सैनिक अपने प्राण बचाने के लिए युद्ध भूमि छोड़कर भागने लगे. ये देखकर वृत्रासुर भयंकर क्रोधित हो उठा. स्वर्गलोक पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए उसने माया से विकराल रूप धारण कर लिया.
शिवोपसना से दूर होंगे कष्ट
देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्रासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र इसके कठोर शरीर से टकराकर चूर-चूर हो गए. अंत में देवराज इन्द्र अपने प्राण और स्वर्गलोक को बचाने के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उनसे वृत्रासुर को हराने का उपाय पूछा. गुरु बृहस्पति ने बताया कि वृत्तासुर बहुत ही पराक्रमी और शक्तिशाली है उसे हराना आसान नहीं. इसका उपाय सिर्फ महादेव ही बता सकते हैं. देवगुरु ने इंद्र देव से भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गुरु प्रदोष व्रत करने को कहा.
गुरु प्रदोष व्रत से प्रसन्न हुए भोलेनाथ
देवराज इंद्र ने गुरु प्रदोष व्रत में विधिवत शिवोपासना की, जिसके फलस्वरूप भोलेनाथ अति प्रसन्न हुए. शिव जी ने इंद्र को संसार के कल्याण और वृत्रासुर को परास्त करने का समाधान बताया. भोलेनाथ ने कहा कि वृत्रासुर को हराने के लिए इंद्र देव को दधिचि से हडि्डयों का दान देने का अनुरोध करना होगा, क्योंकि तप साधना से दधिचि ने अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बनाया है. इनकी हडि्डयों से जो अस्त्र बनेगा वही वृत्रासुर का अंत करेगा.
प्रदोष व्रत के प्रभाव से शत्रु हुआ पराजित
इन्द्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए. देव शिल्पी विश्वकर्मा ने दधिचि की हडि्डयों से वज्र नामक अस्त्र बनाकर इंद्र को सौंप दिया. युद्घ में इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वह रेत की तरह बिखर गया. पुन: देवताओं का देवलोक पर अधिकार हो गया.
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