Lalita Jayanti 2021: कल है ललिता जयंती, पूजा के दौरान जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, पूजा का शुभ मुहूर्त भी जानें
Lalita Jayanti 2021: हिंदू पंचाग के अनुसार इस साल 27 फरवरी यानी कल माता ललिता की जयंति है. माता ललिता सुख समृद्धि और धन धान्य का आशीर्वाद देती हैं. जो भक्त सच्चे मन से मां की अराधना करता है उसके सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं. इस दिन शुभ मुहूर्त पर माता ललिता का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा पढ़नी चाहिए
27 फरवरी यानी कल हिंदू पंचांग के अनुसार ललिता जयंति मनाई जाएगी. ललिता जयंति, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, इस दिन माता ललिता की विधि-विधान से पूजा अर्चना का विधान है. माता ललिता को दस महाविद्याओं की तीसरी महाविद्या माना जाता है. ललिता जयंति के बारे में ऐसी मान्या है कि जो कोई भी भक्त सच्ची श्रद्धा और पूर्ण भक्ति भाव के साथ मां त्रिपुर सुंदरी की अराधना करता है उससे मां प्रसन्न होती है और जीवन में सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी देती है. चलिए जानते हैं ललिता जयंति की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या और और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है.
ललिता जयंति शुभ मुहूर्त
सूर्योदय प्रात: 6 बजकर 48 मिनट 57 सेकेंड
सूर्यास्त- 6 बजकर 19 मिनट 25 सेकेंड
शुभ मुहूर्त- 12 बजकर 11 मिनट 10 सेकेंड से 12 बजकर 57 मिनट 11 सेकेंड तक
ललिता जयंति व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ किया जा रहा था तभी दक्ष प्रजापति भी वहां पहुंच गए और सभी देवगण उनके सम्मान में खड़े गए. लेकिन शंकर जी यथावत अपने आसन पर विराजमान रहे. शंकर जी के न उठने पर दक्ष प्रजापति क्रोधित हो गए और उन्हें ये काफी अपमानजनक लगा. इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने भी शंकर जी को अपने यज्ञ में न्यौता नहीं दिया.
वहीं माता सती को जब इस बात की जानकारी हुई तो वे शंकर जी से इजाजत लिए बगैर ही अपने पिता दक्ष प्रजापति के महल आ पहुंची. लेकिन यहां दक्ष प्रजापति ने माता सती के सामने शंकर जी को काफी भला-बुरा कहा. शंकर जी की निंदा को माता सती सहन नहीं कर पाईं और वे उसी अग्निकूंड में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए. इधर शंकर जी को जब पूरी बात पता चली तो वे सती के वियोग में व्याकुल हो उठे. उन्होंने माता सती के शव को अपने कंधे पर उठाया और चारों दिशाओं में हैरान-परेशान भाव से इधर-उधर घूमना शुरु कर दिया.
भगवान शिव की ऐसी व्याकुल दशा देखकर विष्णु भगवान ने अपने चक्र से से विश्व की पूरी व्यवस्था माता सती के पार्थिव शरीर के 108 टुकड़े कर दिए.बताया जाता है कि उनके अंग जहां-जहां भी गिरे वह उन्हीं आकृतियों में वहा विराजमान हुईं. बाद में ये स्थान शक्तिपीठ स्थल से जाने गए. इन्ही में से एक स्थान मां ललिता का भी है.
नैमिषारण्य में माता सती का हृदय गिरा. यह एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल माना जाता है. यहां शंकर भगवान का लिंग स्वरुप में पूजन किया जाता है और ललिता देवी की अराधना भी की जाती है. गौरतलब है कि भगवान शिव को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से मशहूर हुईं. इन्हें ही ललिता देवी के नाम से पुकारा जाता है.
इस विधान से करें पूजा
माता ललिता की पूजा के लिए इस दिन सुबह जल्दी उठकर, स्नानादि करके स्वच्छ कपड़े पहनें और भगवान शिव और मां पार्वती के समक्ष प्रणाम कर व्रत का संकल्प लें पूजा में पूरे भक्ति भाव के साथ शामिल हों और मां की अराधना करते हुए सुखी जीवन की कामना करें.
व्रत के दिन निराहार रहें. व्रत के प्रसाद के रूप में खीर-पूरी व गुड़ के 7 पुए या फिर 7 मीठी पूरी बनालें. पूजा के लिए धरती पर चौक बनाकर उस पर चौकी रखें और उस पर शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें. इसके बगल ही कलश स्थापित करें ततः उसमें आम के पत्तों को डाल कर नारियल रखें. उसके बाद दीप जलाएं और आरती की थाली सजालें. अब 7 पूड़ी व पुए को केले के पत्ते में बांधकर पूजा में रखें तथा संतान की रक्षा सुरक्षा व उन्नति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करें और शिव तथा पार्वती माता की पूजा करें. उन्हें कलावा अर्पित करें. महिलाओं को पूजा करते समय सूती डोरा या चांदी की संतान सप्तमी की चूड़ी हाथ में पहननी चाहिए. पूजन के बाद धूप, दीप नेवैद्य अर्पित कर संतान सप्तमी की कथा पढ़ें या सुनें. व्रत खोलने के लिए पूड़ी या पुए के प्रसाद को खाएं.ये भी पढ़ें
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