Bajrang Baan Path: मंगलवार को कैसे करें बजरंग बाण का पाठ, जानें इसके फायदे और नियम
Bajrang Baan: हनुमान जी की कृपा पाने के लिए विशेषकर मंगलवार और शनिवार को ये पाठ करना उत्तम माना गया है. आइए जानते हैं कब करना चाहिए बजरंग बाण का पाठ और इसके क्या है लाभ.
Bajrang Baan Path: मंगलवार का दिन राम भक्त हनुमान जी की पूजा के लिए समर्पित है. हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है. कहते हैं जब विपदा बहुत प्रबल हो जाए, हर कार्य में निराशा हाथ लगे तब हनुमान जी की पूजा और बजरंग बाण का पाठ करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. बजरंग बाण को बहुत प्रभावशाली माना गया है. हनुमान जी की कृपा पाने के लिए विशेषकर मंगलवार और शनिवार को ये पाठ करना उत्तम माना गया है. बजरंग बाण पाठ को विधि पूर्वक करने से डर, रोग, ग्रह दोष दूर होते हैं. आइए जानते हैं कब करना चाहिए बजरंग बाण का पाठ और इसके क्या है लाभ.
कब करें बजरंग बाण पाठ
बजरंग बाण का पाठ बहुत शक्तिशाली है. नियम के अनुसार इस पाठ को करने का उद्देश्य किसी विशेष कार्य को सिद्ध करने के लिए किया जाता है. बाण का अर्थ है निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना. यही वजह है कि बजरंग बाण का पाठ तभी करना चाहिए जब सारी परिस्थितियां आपके विरुद्ध हो जाएं और कोई हल नजर ना आए तो इस पाठ के करने से हनुमान जी की विशेष कृपा मिलती है और जल्द परिणाम दिखने लगते हैं.
बजरंग बाण के फायदे
- भय, रोग, दोष से छुटकारा पाने के लिए
- कार्य में आ रही बाधाओं को दूर करने और उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए
- दुश्मनों पर जीत हासिल करने के लिए
बजरंग बाण पाठ करने की विधि
- मंगलवार या शनिवार को निमित्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए बजरंग बाण के पाठ का संकल्प लें.
- सूर्योदय से पहले स्नान के बाद हनुमान जी के प्रिय रंग लाल या नारंगी रंग के वस्त्र पहनें.
- हनुमान जी की तस्वीर के समक्ष घी का दीपक जलाएं.
- बजरंग बाण का पाठ कुश के आसन पर बैठकर करें. ये पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ और एक बार में ही पूरा करने का विधान है.
बजरंग बाण
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जनके काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर मह भई।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुख करहु निपाता।
जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले।
गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महारज प्रभु दास उबारो।
ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लावो।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।
सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दा तुम्हारा।
वन उपवन मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पांय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रति पालक।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।
इन्हें मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।
जनक सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ विलंब न लावो।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।
चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई।
ओम चं चं चं चं चपल चलंता। ओम हनु हनु हनु हनु हनुमंता।
ओम हं हं हांक देत कपि चंचल। ओम सं सं सहमि पराने खल दल।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होत आनंद हमारो।
यहि बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबारे।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज शकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
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