Tulsi Vivah 2022: कैसे हुआ तुलसी-शालीग्राम का विवाह, जानें कब शुरू हुई ये परंपरा और वृंदा कैसे बनी तुलसी
Tulsi Vivah: 5 नवंबर 2022 को शालिग्राम और तुलसी विवाह की परंपरा निभाई जाएगी. इस दिन क्यों होता है तुलसी विवाह, वृंदा कैसे बनी तुलसी आइए जानते हैं.
Dev Uthani Ekadashi, Tulsi Vivah 2022: देवउठनी एकादशी 4 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं और सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. 5 नवंबर 2022 को शालिग्राम और तुलसी विवाह की परंपरा निभाई जाएगी. श्रीहरि भगावन विष्णु के शालीग्राम बनने के पीछे क्या है वजह और क्यों तुलसी से उन्हें करना पड़ा विवाह. वहीं मंगल का आशीष देने वाली तुलसी की उत्पत्ति कैसे हुई. आइए जानते हैं इस कथा में.
तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah katha)
पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नाम का एक बहुत शक्तिशाली राक्षस था. देवी-देवता उसके आतंक से बहुत परेशान रहते थे. उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थी उसकी पूजा पाठ के प्रभाव से जालंधर को युद्ध में कोई हरा नहीं पाता था. वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी. वृंदा की भक्ति के कारण जालंधर हर लड़ाई में हमेशा विजय होता. उसका उपद्रव बहुत बढ़ चुका था. एक दिन उसने स्वर्गलोक पर हमला कर दिया. सभी देवता परेशान होकर श्रीहरि की शरण में गए और इसका समाधान निकालने का आग्रह किया.
विष्णु ने छल से भंग किया वृंदा का पतिव्रता धर्म
भगवान विष्णु जानते थे कि वृंदा की भक्ति भंग किए बिना जालंधर को परास्त करना असंभव है. श्रीहरि ने जालंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया. उस वक्त जालंधर देवताओं के साथ युद्ध कर रहा था. वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट होते ही जालंधर की सारी शक्तियां खत्म हो गईं और वह युद्ध में मारा गया. वृंदा को बाद में भगवान विष्णु के इस छल का भान हुआ तो वह क्रोधित हो उठी और फिर श्रीहरि को श्राप दे दिया.
ऐसे शालीग्राम बने भगवान विष्णु
वृंदा का सतीत्व भंग होने पर उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह आपने छल से मुझे पति वियोग का कष्ट दिया है उसी तरह आपकी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा. साथ ही आप पत्थर के हो जाओगे. यही पत्थर शालीग्राम कहलाया. कहा जाता है कि वृंदा के श्राप के चलते श्री विष्णु ने अयोध्या में दशरथ पुत्र श्री राम के रूप में जन्म लिया और बाद में उन्हें सीता वियोग का भी कष्ट सहना पड़ा.
वृंदा ही बाद में कहलाई तुलसी
वृंदा पति की मृत्यु को सहन नहीं कर पाई और सती हो गई. कहते हैं कि वृंदा की राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया. श्रीहरि ने घोषणा की कि तुलसी के बिना मैं प्रसाद ग्रहण नहीं करूंगा. मेरा विवाह शालीग्राम रूप से तुलसी के साथ होगा. कालांतर में इस तिथि को लोग तुलसी विवाह के नाम से जानेंगे. कहते हैं कि जो शालीग्राम और तुलसी विवाह कराता है उसका वैवाहिक जीवन खुशियों से भर जाता है. साथ ही उसे कन्यादान करने के समान पुण्य मिलता है.
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