चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु सलाहकार और महामंत्री आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को स्वयं साधारण गांव वाले से महान सम्राट में बदल दिया था. निश्चित ही चंद्रगुप्त में योग्यता रही थी. उसे पहचाना और निखारा. आज भी चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल को सर्वाेत्तम कालों में से एक मानता है.


चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को कीचड़ में पड़े सोने को उठाकर और साफकर उपयोग में लाना चाहिए. कीचड़ के कारण सोने का त्याग नहीं कर देना चाहिए. विष में छिपे अमृत को अलग कर उसका प्रयोग करना चाहिए. चाणक्य कहते हैं नीच कुल में जन्में ज्ञानवान व्यक्ति से भी ज्ञानार्जन में आगे रहना चाहिए. संकोच नहीं करना चाहिए. ज्ञान स्वयं प्रकाश है. उसे पाने वाले और देने वाले के कुल वंश के आधार पर नहीं परखना चाहिए.


इसी प्रकार बदनाम परिवार की गुणवान स्त्री जो श्रेष्ठ गुणों से संपन्न है. उससे सीख लेना चाहिए. ज्ञान ग्रहण करने में संकोच नहीं करना चाहिए.


चाणक्य ने धननंद की सत्ता को पलटने के लिए तमाम ऐसे लोगों का साथ भी अर्जित कर लिया था जो उन्हीं के विरोधी हुआ करते थे. चाणक्य ने कृत्य विचार और व्यवहार से विरोध न रखकर देश और शासन के हित में उनके श्रेष्ठ को उभारा अर्थात् अमृत तत्व पर ध्यान दिया. इन्हीं सबके संयुक्त योगदान के बल पर चंद्रगुप्त का साम्राज्य महान बना.