Ayodhya Ram Statue, Shaligram Stone: अयोध्या में रामलला की मूर्ति नेपाल के शालीग्राम शिलाओं से बनेगी. धर्म ग्रंथों में शालीग्राम पत्थर को साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु के ही सातवें अवतार माने गए हैं. राम भगवान की मूर्ति को जिस शालिग्राम पत्थर से तराशा जाएगा वह नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है. आइए जानते हैं शालिग्राम पत्थर का महत्व.
इस कारण शालीग्राम शिला से बन रही है राम की मूर्ति
धार्मिक मान्यता है कि शालिग्राम पत्थर बेहद चमत्कारी माना गया है. कहते हैं जहां शालिग्राम की पूजा होती है वहां मां लक्ष्मी का वास होता है. वहीं गंडकी नदी के शालिग्राम शिला को लेकर पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान विष्णु ने वृंदा (तुलसी) के पति शंखचूड़ को छल से मार दिया था.
वृंदा को इस बात का पता चला तो उन्होंने विष्णु को पाषाण होकर धरती पर निवास करने का श्राप दिया. चूंकि वृंदा श्रीहरि की परम भक्त थी, तुलसी की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने कहा कि तुम गंडकी नदी के रुप में जानी जाओगी और मैं शालिग्राम बनकर इस नदी के पास वास करुंगा. कहते हैं कि गंडकी नदी में जो शालिग्राम शिला है उन पर चक्र, गदा का चिन्ह पाए जाते हैं.
शालिग्राम पत्थर का महत्व (Shaligram Stone Significance)
हिंदू धर्म में शालिग्राम का खास महत्व है. हिंदूओं में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की पूजा विभिन्न प्रकार से की जाती है. जैसे ब्रह्मा जी की पूजा शंख के रूप में और भगवान शिव की उपासना शिवलिंग के रूप में की जाती है, ठीक उसी तरह भगवान विष्णु की उपासना भगवान शालिग्राम के रूप में की जाती है. कहते हैं कि 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं. इन सभी को श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा गया है. विष्णु के गोपाल रूप में गोलाकार शालिग्राम की पूजा होती है. मछली के आकार के शालिग्राम को मत्स्य अवतार का रुप माना जाता है. कछुए के आकार को कुर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है. जिन शालीग्राम में रेखाएं होती हैं उन्हें श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है.
मां लक्ष्मी का मिलता है आशीर्वाद
शालिग्राम स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं. शालिग्राम शिला को अलौकिक माना गया है. कहते हैं जिस घर या मंदिर में शालिग्राम विराजते हैं वहां के भक्तों पर मां लक्ष्मी मेहरबान रहती है, साथ ही वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है.
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