Vaikuntha Chaturdashi 2022: हरि-हर के मिलन का प्रतीक बैकुंठ चतुर्दशी 6 नवंबर 2022 को है. बैकुंठ चतुर्दशी देव दिवाली और कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले यानी कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी को आती है. साल में सिर्फ इसी तिथि पर भगवान शिव और विष्णु की साथ में विधिवत पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु ने शिव कमल के पुष्पों से उपासना की थी. मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर कथा का श्रवण करने से 14000 पाप कर्मों का दोष मिट जाता है. आइए जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी की कथा.


बैकुंठ चतुर्दशी कथा (Vaikuntha Chaturdashi Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए. यहां उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और फिर 1000 स्वर्ण कमल के पुष्पों  भोलेनाथ को उपासना करने का संकल्प लिया. श्रीहरि ने काशी में शिवलिंग का अभिषेक किया और विधिविधान से पूजा करने लगे तो शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया.


जब शिव ने ली विष्णु की परीक्षा


भगवान विष्णु को को पुंडरीकाक्ष और कमल नयन भी कहा जाता है. ऐसे में पुष्प की कमी होने पर विष्णु जी ने अपने कमल समान नयन समर्पित करने लगे, श्रीहर की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए. उस दिन कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी तिथि थी. भोलेनाथ बोले आज से ये तिथि बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी. इस दिन जो व्रत कर पूर्ण श्रद्धा के साथ पहले आपका (विष्णु जी) का पूजन करेगा उस बैकुंठ में स्थान प्राप्त होगा.


बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत से मिट जाते हैं पाप कर्म


भगवान भोलेनाथ ने इसी दिन करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र श्रीहरि को प्रदान किया. एक और मान्यता के अनुसार श्रीहरि ने इस दिन जय-विजय को स्वर्ग के द्वार खुले रखने का आदेश दिया था. कहते हैं कि पृथ्वीलोक पर रहने वाले प्राणी को इस दिन व्रत और जगत के पालहार की पूजा करने से मृत्यु के बाद यमलोक की पीड़ा नहीं सेहनी पड़ती, उसे मोक्ष की प्राप्त होता है. उसे 14000 पाप कर्मों से मुक्ति मिलेगी.


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