Spirituality, Valentines Day 2023, Meerabai: वैलेंटाइन डे यानी प्यार का दिन, जिसे 14 फरवरी को दुनियाभर में मनाया जाता है. वैलेंटाइन डे मनाने और इसके कारण का भले ही अपना एक अलग इतिहास रहा है. लेकिन प्रेम की लीला तो सदियों से चली आ रही है. दुनिया का हर बंधन प्यार से बना है. इसी तरह मीराबाई का जीवन भी कृष्ण प्रेम में बंधा था, जिससे मीराबाई जीवनभर मुक्त नहीं हो सकीं.



 


कृष्ण की भक्ति और कृष्ण के अनन्य प्रेम मीरा के रोम-रोम में था, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. कृष्ण भक्त मीराबाई एक मशहूर संत, कवयित्री और कृष्ण की प्रेमिका थीं. भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी साधक थी जिनके अध्यात्मिक प्रेम से मीरा को पूरा संसार ही कृष्णमय लगता था. उनके रोम-रोम में कृष्ण बसे थे और उन्हें कण-कण में कृष्ण दिखाई देते थे.


सांसारिक मोह माया और भौतिक सुखों का त्याग कर मीरा का मन केवल कृष्ण लीला, संत समागम, संगीत और भगवत चर्चा में ही लगता था. मीराबाई की भक्ति का अलग-अलग तरह से वर्णन किया गया है, दोहे, कविताएं, पद और भजनों में मीरा की भक्ति की अनूठी प्रस्तुति मिलती है. प्यार के इस खास मौके वैलेंटाइन डे 2023 पर जानते हैं, ऐसी ही कुछ लोकप्रिय रचनाओं को-


हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद जाने कोय।
सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय।
गगन मंडल पर सेज पिया की, किस बिध मिलना होय॥


घायल की गति घायल जानै, कि जिन लागी होय।
जौहरी की गति जौहरी जाने, कि जिन लागी होय॥


दरद की मारी बन बन डोलूं वैद मिल्यो नहीं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटै जब वैद सांवलया होय॥


अर्थ है- ऐ सखी, मैं तो प्रेम में दीवानी हो गई हूं, मेरा दर्द कोई नहीं जानता. हमारी सेज सूली पर है, भला नींद कैसे आ सकती है और मेरे प्रिय की सेज आसमान पर है. आखिर कैसे मुलाकात हो. घायल की हालत तो घायल ही जान सकता है, जिसने कभी जख्म खाया हो. रत्न की पहचना जौहरी ही कर सकता है. दर्द से बेचैन होकर जंगल-जंगल मारी फिर रही हूं और कोई मुआलिज मिलता नहीं मेरे मालिक. मीरा का दर्द तो उस वक्त मिटेगा जब सांवरे श्री कृष्ण ही वैद्य बन कर चले आएं.


बरसै बदरिया सावन की
सावन की मन भावन की।


सावन में उमग्यो मेरो मनवा
भनक सुनी हरि आवन की।।


उमड घुमड चहुं दिससे आयो,
दामण दमके झर लावन की।


नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै,
सीतल पवन सोहावन की।।


मीरां के प्रभु गिरधर नागर,
आनन्द मंगल गावन की।।


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।


अर्थ है- मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं जिसने पर्वत को उंगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया है. इसके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती. जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही  मेरे पति हैं.




अर्थ है- मन को लुभाने वाली सावन की ऋतु आ गई है और बादल भी बरसने लगे हैं. मेरा हृदय उमंग से भर उठा है क्योंकि हरि के आने की संभावना जाग उठी है. मेघ चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ कर आ रहे हैं, बिजली चमक रही है और नन्हीं बूंदों की झड़ी लग गई है. ठंडी हवा मन को सुहाती हुई बह रही है. मीरा के प्रभु तो गिरधर नागर हैं, सखि आओ उनका मंगल गान करें.


हरि तुम हरो जन की भीर। 
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर।।


भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर। 
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर।।


बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर। 
दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहं पीर।।


अर्थ है- इसमें मीरा कहती है कि, हरी तुम सभी लोगों के संकट को दूर करो. जिस तरह आपने द्रोपती की लाज बचाने के लिए उसकी चीर को बढ़ाते गए. आपने अपने भक्त के लिए नरसिंग का रूप धरा और हिरणकश्यपु को मार दिया. जिस तरह पानी में डूबते हुए हांथी की रक्षा की. उसी तरह दासी मीरा के भी दुखों पर दूर करो गिरधर.




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