Vamana Jayanti 2023: आखिर क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा था वामन अवतार, जानिए यह कथा
Vamana Jayanti 2023: वामन देव को भगवान विष्णु का पांचवा अवतार कहा जाता है. त्रेतायुग में भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ऋषि कश्यप और माता अदिति के घर वामन देव का जन्म हुआ था.
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Vamana Jayanti 2023: पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती के मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता है कि, इसी दिन त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार में धरती पर जन्म लिया था. वामन देव का अवतार भगवान विष्णु का पांचवा अवतार माना जाता है. इससे पहले भगवान मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह अवतार में जन्म ले चुके हैं.
इस तिथि में वामन देव का जन्म होने के कारण इसे वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है. इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं. इस दिन व्रत रखकर वामन देव की पूजा की जाती है. इस साल वामन जयंती 26 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी. मान्यता है कि वामन देव की पूजा करने से जीवन के दुख, दर्द और दरिद्रता दूर हो जाते हैं.
भगवान विष्णु को क्यों लेना पड़ा वामन अवतार
वेद-पुराणों में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन मिलता है, जिसमें वामन पांचवा अवतार है. जब-जब सृष्टि पर विपत्ति या संकट आती, तब-तब श्रीहरि अवतार में जन्म लेकर इसे दूर करते. भगवान विष्णु का वामन अवतार भी इसी उद्देश्य से हुआ था. भगवान विष्णु के वामन अवतार को लेकर ऐसी मान्यता है कि, इंद्र देव को स्वर्ग का राजपाट लौटाने के लिए और अति बलशाली दैत्यराज बलि के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु को वामन अवतार लेना पड़ा था. आइये जानते हैं विष्णु जी के वामन अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.
वामन जयंती 2023 पौराणिक कथा (Vamana Jayanti 2023 Mythological Katha in Hindi)
दैत्यराज बलि बहुत बलशाली था और उसने अपने बल से तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया. राजा बलि भले ही क्रूर था और उसे अपनी शक्ति का बहुत घमंड भी था. लेकिन इसी के साथ वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त भी था और वह खूब दान-पुण्य करता था. इस कारण इंद्रदेव की जगह उसे स्वर्ग का स्वामी बना दिया गया.
जब देवी-देवताओं को परेशान करने लगा बलि
लेकिन जैसे ही बलि को स्वर्ग का स्वामी बनाया गया, उसने अपने बल और पद का गलत प्रयोग कर सभी देवी-देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया. बलि के अत्याचार से स्वर्ग के सभी देवी-देवता भी बहुत परेशान हो गए और इसके बाद सभी ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. इंद्र देव ने भी भगवान से स्वर्ग पर पुन: अधिकार प्राप्त करने की प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु ने सभी देवी-देवताओं को यह आश्वसान दिया कि, वह राजा बलि के घमंड को तोड़ेंगे और उसके कब्जे से तीनों लोकों को मुक्त कराएंगे. अपने इसी वचन को निभाने के विष्णु जी ने त्रेतायुग में धरती पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को माता अदिति और कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया. इसे ही भगवान विष्णु का वामन अवतार कहा जाता है.
विष्णु जी एक बौने या बटुक ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि के पास पहुंचे. इस रूप में उनके एक हाथ में छाता और दूसरे में लकड़ी थी. वामन देव ने बलि से तीन पग भूमि दान में देने की विनती की. बलि अपनी वचनबद्धता और दान देने के लिए प्रसिद्ध थे. इसलिए असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि से किसी भी तरह का कोई वचन देने से पहले चेतावनी भी दी, लेकिन इसके बावजूद राजा बलि ने ब्राह्मण पुत्र को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया.
वामन देव ने दो पग में नाप लिया स्वर्ग-पृथ्वी
इसके बाद वामन देव ने विशाल रूप धारण कर लिया और उन्होंने अपने एक पैर से पूरी धरती और दूसरे पैर से पूरे स्वर्ग लोक को नाप लिया. इसके बाद जब तीसरे पैर के लिए कुछ भी नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और वामन देव को अपने सिर पर पैर रखने के लिए कहा. इस तरह से भगवान ने बलि का घमंड तोड़ दिया. लेकिन बलि की वचनबद्धता से वे अति प्रसन्न हुए और इसके बाद उसे पाताल लोक का राजा बना दिया. जैसे ही वामन देव ने राजा बलि के सिर पर अपना पैर रखा, वो तुरंत पाताल लोक पहुंच गए और भगवान विष्णु की कृपा से बलि ने अनंतकाल तक पाताल लोक में राज किया.
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