Varad chaturthi 2022: हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन (Ganesh Pujan) करने का विधान है. वहीं, हफ्तें के बुधवार का दिन भी गणेश जी को समर्पित है. हर माह के दोनों पक्षों में पड़ने वाली चतुर्थी को गणेश जी की पूजा-पासना की जाती है. पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस बार 6 जनवरी को विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी. इसे वरद चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. 


इस दिन गणेश भक्त विघ्नहर्ता भगवान गणेश के लिए व्रत (Lord Ganesh Vrat) रखते हैं. विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है. शुभ-लाभ को भगवान गणेश की संतान माना जाता है. ये साल की पहली गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) है. इस दिन भगवान के लिए व्रत रखने, पूजा करने और गणेश जी की स्तुति (Ganesh Stuti) करने से शुभ-लाभ की प्राप्ति होती है. और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. 


वरद चतुर्थी (Varad Chaturthi 2022) के दिन गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए दूर्वा और मोदक का भोग लगाना चाहिए. वरद चतुर्थी के दिन लाल या सिंदूरी रंग के कपड़े पहन कर ही पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि ये रंग भगवान को प्रिय है.  कहते हैं कि इस दिन श्री शंकरचार्य रचित इस गणेश स्तुति का पाठ (Ganesh Stutui Path) करना विशेष फलदायी होता है. गणेश जी की इस स्तुति (Ganesh Stuti) का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करनी चाहिए.


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गणपति स्तुति (Ganpati Stuti)


मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।


अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।


नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।


सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।


समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।


कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।


अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।


प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।


 


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नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।


हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।


महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।


अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।


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