Ekadashi 2020: वरूथिनी एकादशी का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. 18 अप्रैल को आने वाली वरूथिनी एकादशी बहुत ही विशेष है. इस एकादशी को व्रत रखने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं इस एकादशी को मोक्षदायक भी कहा जाता है.


हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को बहुत महत्व दिया गया है. एकादशी का संबंध पुण्य कार्य और भक्ति से है. जो लोग एकादशी का व्रत रखते हैं उनका चित्त शांत रहता है. ऐसे लोग सकारात्मक ऊर्जा से भरे रहते हैं. मन की शांति के लिए भी एकादशी का व्रत बहुत ही लाभकारी माना गया है. यह व्रत कई रोगों से भी बचाता है.


पौराणिक मान्यता
वरूथिनी एकादशी का व्रत को करने से सभी प्रकार के सुखों का आनंद मिलता है और स्वर्ग का मार्ग खुलते हैं. इस दिन किए जाने वाले दान को भी बहुत ही विशेष माना गया है. इस दिन किए जाने वाले दान की तुलना मकर संक्रांति के दिन किए जाने वाले दान से की जाती है.


वरूथिनी का अर्थ
वरूथिनी शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है प्रतिरक्षक. यानि कवच या रक्षा करने वाला. इस दिन का व्रत व्यक्ति को हर समस्या से लड़ने की ताकत प्रदान करता है और रक्षा करता है.


वरूथिनी एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार राजा मांधाता बहुत दानी और तपस्वी राजा माने जाते थे. उनकी ख्याति चारों तरफ फैली हुई थी. एक बार वे जंगल में तपस्या कर रहे थे. तभी वहां अचानक एक भालू आग गया और उनके पैरों को खाने लगा. इसके बाद भी राजा मांधाता अपनी साधना में लीन रहे. उन्हें क्रोध भी नहीं आया. उन्होंने भालू से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब उन्हें दर्द और पीड़ा अधिक होने लगी तो राजा ने भगवान विष्णु का स्मरण किया.


भक्त की पुकार पर भगवान विष्णु राजा की मदद को आए और राजा के प्राण बचाए. लेकिन भालू तब तक राजा के पैरों को काफी नुकसान पहुंचा चुका था. राजा यह देखकर दुखी हुए लेकिन भगवान विष्णु ने कहा राजा परेशान न हो, क्योंकि भालू ने तुम्हें उतना ही नुकसान पहुंचाया है जितना पिछले जन्म में तुम्हारे पाप कर्म थे. भगवान विष्णु ने तब राजा से कहा कि तुम्हारे पैर ठीक हो जाएंग यदि तुम मथुरा की भूमि पर वरूथिनी एकादशी का व्रत करो. राजा ने भगवान की बात का अक्षर अक्षर पालन किया और उसके पैर ठीक हो गए.


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