Vastu Shastra: वास्तुपुरुष को समझने के लिए पंचमहाभूत को समझना जरूरी, जाने क्या है तत्वों का आहार, क्या है तत्वों की एनर्जी
Vastu Shastra: जिस तरह मनुष्य का शरीर उसके पैरों पर ही खड़ा होता है, वही उसका आधार है. उसी प्रकार वास्तु में भी नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) ही किसी भूखंड या भवन का आधार है.
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Vastu Shastra: वास्तु के गूढ़ रहस्यों को समझते हुए हम लोग आज पंचतत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. आप जानते है कि प्रकृति की शक्तियां अनंत है. इन्हीं शक्तियों के द्वारा सृष्टि का निर्माण उसका विकास, हृास की सतत प्रक्रिया का संचालन हुआ करता है. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश इन शक्तियों में पंच महाभूत हैं. इनके भी अपने अलग-अलग गुणधर्म हैं. जिसका प्रभाव हमारे जीवन पर देखा जा सकता है.
पृथ्वी तत्व की प्रधानता
पंच तत्वों से सबसे अधिक स्थूल तत्व है पृथ्वी तत्व. वास्तु में सबसे उपयोग पृथ्वी तत्व का होता है. जैसे हम अपने शरीर को देखें तो सबसे अधिक पृथ्वी तत्व ही है. उसी प्रकार किसी भवन में भी पृथ्वी तत्व का सर्वाधिक उपयोग होता है. कहने का तात्पर्य यह है कि अनुपात में पृथ्वी तत्व का प्रयोग अधिक मात्रा में होना वास्तु की अनिवार्यता है.
वास्तु पुरुष की परिकल्पना
हमारे ऋषियों ने भूखंड में एक वास्तु पुरुष के लेटे होने की परिकल्पना की है. जिसका सिर ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) की ओर तथा पैर नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) की ओर है. अब तनिक विचार करें कि नैऋत्य की ओर पैर होने का क्या अर्थ है. पहली बात तो यह है कि नैऋत्य कोण में पृथ्वी का स्थान है. जिस तरह मनुष्य के पैर पृथ्वी पर चलते हैं या पृथ्वी के संपर्क में रहते है ठीक उसी प्रकार वास्तु पुरुष के पैर भी पृथ्वी की ओर ही माने गए हैं. जिस तरह मनुष्य का शरीर उसके पैरों पर ही खड़ा होता है, वही उसका आधार है. उसी प्रकार वास्तु में भी नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) ही किसी भूखंड या भवन का आधार है. अनेक देवता जीवन के अनेक आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं. आप इसे ऐसे समझें कि वैदिक देवता जिस गुण धर्म के हैं जहां पर इनका वास है, भवन में प्राकृतिक रूप में उसी प्रकार का ऊर्जा क्षेत्र विधमान रहता है. इन देवताओं की प्रकृति के अनुरूप वातावरण देना ही वास्तु का लक्ष्य है.
पृथ्वी पर जल भारी
बहुत सूक्ष्म में न जाकर यदि केवल तत्वों पर ही विचार करें तो सभी तत्व एक दूसरे के अध्यात्मिक स्तर पर पूरक होते हुए भी भौतिक रूप से भयंकर शत्रु भी है. जैसे पृथ्वी तत्व का प्रबल विरोधी तलाशना हो तो यह निश्चित है कि आग पृथ्वी को आसानी से नहीं जला सकती वायु उसे सुखा नहीं सकती है. अगर कोई तत्व पृथ्वी को नुकसान कर सकने की क्षमता रखता है तो वह है जल तत्व. जल तत्व पर पृथ्वी को कोई बल नहीं चलता है. पृथ्वी जल में पड़ जाए तो हार जाती है, अपना अस्तित्व खो देती है. दरअसल जल तत्व का भोजन ही पृथ्वी तत्व है, क्योंकि पृथ्वी तत्व सबसे स्थूल तत्व है. आप मिट्टी के ढेले को एक गिलास पानी में डालें, तो आप देखेंगे कि कुछ देर में यह ढेला गायब हो जाएगा, और पानी मटमैला हो जाएगा.
जल की शत्रु वायु
अब आगे देखें कि वायु तत्व, जल तत्व से सूक्ष्म तत्व है. इसलिए वह जल को खा जाता है. आप जानते हैं कि जल को ऊष्मा मिल जाए तो वह भाप बन जाता है यानी वायु अपने में जल को रूपांतरित कर लेती है.
अग्नि का भोजन वायु
वायु से ज्यादा बलवान अग्नि तत्व . अग्नि का तो भोजन ही वायु है. जहां भी अग्नि जलती है बिना वायु का भक्षण किये वह जल ही नहीं सकती इसके बाद सबसे सूक्ष्म आकाश है, जिसकी वजह से सारे तत्वों का होना संभव होता है. इन सब तत्वों को यहां इसलिए समझाया कि आप इनके संबंधों को भली भांति जान सकें.
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