वास्तुशास्त्र में गौमुख निवास को श्रेष्ठ माना गया है. गौमुख मकान का पिछला हिस्सा मुख्यद्वार वाले हिस्से से अधिक चौड़ा होता है. यह आकृति ठीक गाय के मुख के समान नजर जाती है. गाय का मुख गर्दन के पास से संकरा होते हुए मुंह तक आते छोटा होता जाता है. गौमुख द्वार की दिशा संकरी होने से यह संरक्षित भूमि-भवन की श्रेणी में आ जाता है. इसमें प्रवेश करने वाला सुरक्षित और स्थिर अनुभव करता है.


धनलक्ष्मी के संग्रह के लिए ऐसा भवन अत्यंत शुभकारी माना जाता है. यहां कोई वस्तु आने के बाद स्थायित्व के प्रभाव में आ जाती है. गौमुख प्लॉट का प्रयोग केवल रिहायशी घर बनाने के लिए ही किया जाना चाहिए. ऐसे स्थान से व्यापार करना हितकर नहीं होता. ऐसे स्थान से वस्तु जल्दी बाहर नहीं आतीं. इससे व्यापार प्रभावित होता है. व्यापार में वस्तुओं के ठहराव से महत्वपूर्ण उनका आवागमन होता है.


गौमुख भवन में निवासरत लोग धर्म संस्कार और परंपराओं का निर्वहन करने वाले होते हैं. समाज में सम्मानित होते हैं. सत्ता से संरक्षण प्राप्त होता है. गौमुख भवन उत्तर और पूर्व दिशा का होना अधिक शुभकारक होता है. ये दिशाएं शीतलता और सौख्य प्रदान करती हैं. इन दिशाओं के प्रभाव से अन्य आंशिक नकारात्मक स्वतः समाप्त हो जाते हैं.


गौमुख आकार का गोदाम नहीं बनाया जाता है. गोदाम से अपेक्षा रहती है कि वहां संरक्षित वस्तुओं का घुमाव होता रहे. दक्षिण और पश्चिम दिशा के गौमुख निवास स्थान शुभकर नहीं माने जाते हैं. इनमें ऊष्मा का प्रभाव अधिक रहता है. इससे घर वालों की मनोदशा में क्रोध बढ़ सकता है.