Ved Vaani, Importance of Daan: दान केवल इन जन्म का ही नहीं बल्कि अगले जन्म का साथी होता है. इसलिए वेद-पुराणों में कहा गया है कि, जीवन में दिए गए दान का फल व्यक्ति को केवल इस जन्म में ही नहीं बल्कि अगले जन्म में भी मिलता है.
मृत्यु के बाद परिवार, मित्र, धन, दौलत, संपत्ति जब कुछ पृथ्वीलोक पर ही छूट जाते हैं. लेकिन परलोक में केवल दान ही उसके साथ मित्रता निभाता है. इसलिए सनातन धर्म में दान करने की परंपरा रही है. कहा जाता है कि दान से देवता को भी प्रसन्न किया जा सकता है.
दान को लेकर क्या कहते हैं वेद-पुराण
अर्थवेद में कहा गया है-
शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त सं किर
अर्थ है: सौ हाथों से धन अर्जित करो और हजारों हाथों से बांटों.
नादत्तं कस्योपतिष्ठते
अर्थ है: बिना दिए किसी को भला क्या मिलेगा.
महाभारत में यक्ष-युधिष्ठर का ये संवाद भी दान के महत्व को बताया है. यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, मृत्यु पश्चात साथ क्या जाता है? युधिष्ठिर बोले- मृत्यु के बाद व्यक्ति द्वारा किया गया दान ही उसके साथ जाता है. भविष्यपुराण में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं-‘मृत्यु के बाद धन-वैभव व्यक्ति के साथ नहीं जाते, व्यक्ति द्वारा सुपात्र को दिया गया दान ही परलोक के रास्ते में उसका भोजन बनकर उसके साथ जाता है.’ इसलिए अपने जीवन में हम जो भी दान करते हैं, उसका कई गुणा फल हमें मिलता है.
दान को लेकर विद्वानों और संतों की कई कथाएं और दोहे भी खूब प्रचलित हैं, जिसमें दान करने के महत्व को बताया गया है.
- साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।। - दान दिया संग लगा, खाया पिया अंग लगा,
और बाकी बचा जंग लगा। - इक हाथ से गर तू लुटायेगा खजाने।
सौ हाथ से मालिक तेरे भर देगा खजाने।। - जितना बोओगे, उसका कई गुना अधिक पाओगे
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