Ved Vaani: वेद-पुराणों में है गुरु-शिष्य की परंपरा का उल्लेख, मनुष्य से लेकर देवता और असुर के भी थे गुरु
Ved Vaani,Vedas: भारत में गुरु शिष्य की परंपरा का प्रचलन वैदिक काल के पहले से ही रहा है. गुरु को भगवान तुल्य माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार संसार के सबसे पहले गुरु भगवान शिव हैं.
Ved Vaani, Guru Shishya Tradition: वैदिक काल के पहले से ही गुरु-शिष्य की परंपरा चली आ रही है. गुरु-शिष्य की परंपरा नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सोपान है. गुरु द्वारा जो शिक्षा या विद्या शिष्य को सिखाई जाती है. उस ज्ञान को अर्जित कर बाद में शिष्य गुरु के रूप में अपने शिष्यों को उसकी शिक्षा देता है. यही क्रम चलता रहता है और शिक्षा व विद्या का विस्तार गुरु-शिष्य की परंपरा से होता रहता है. गुरु से शिष्य को मिलने वाला ज्ञान संगीत, कला, अध्यात्म, वेदाध्ययन, वास्तु आदि कुछ भी हो सकता है.
गुरु में ‘गु’ शब्द का अर्थ अंधकार और ‘रु’ का अर्थ प्रकाश ज्ञान से होता है. यानी अज्ञान को नष्ट करने वाला ऐसा ज्ञान जोकि ब्रह्मा के रूप प्रकाश है, वही गुरु है. इसलिए भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर के समान माना गया है. क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को गुरु बनाते हैं.
गुरु-शिष्य परपंरा का महत्व
यो गुरुः स शिवः प्रोक्ता यः शिवः गुरुस्मृतः।
विकल्पं यस्तु कुर्वीत स नरो गुरुतल्पगः।।
अर्थ है: जो गुरु है वही शिव है, जो शिव है वही गुरु हैं. दोनों में जो अंतर मानता है वह गुरुपत्नी गमन करने वाले के समान पापी है.
कबीरदास अपने दोहे में कहते है-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।
अर्थ है: गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सम्मुख खड़े है, परन्तु गुरु ने ईश्वर को जानने का मार्ग दिखाया है.
यानी जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विधमान रहे तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाएं, क्योंकि गुरु से ही हमें ईश्वर के पास पहुंचने का ज्ञान व मार्ग प्राप्त हुआ है.
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वराय।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।
अर्थ है: गुरु की महिमा को मण्डित किया गया है कि गुरु यदि मिल जाए तो जीवन में भगवान को पाना आसान हो जाता है और गुरू के रुप में साक्षात ईश्वर की प्राप्ति होती है.
गीता के अनुसार-
गीता में भगवान कृष्ण ने गुरु-शिष्य परंपरा को ‘परम्पराप्राप्तम योग’ बताया है. गुरु-शिष्य परंपरा का आधार सांसारिक ज्ञान से शुरू होता है, लेकिन इसका चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक शाश्वत आनंद की प्राप्ति है, जिसे ईश्वर-प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति भी कहा जा सकता है.
प्राचीन काल के गुरुओं के नाम
भारत में गुरु शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लेकिन गुरु केवल मनुष्यों के ही नहीं हुआ करते थे. बल्कि पौराणिक समय में देवताओं और असुरों के भी गुरु थे. जानते हैं देवताओं से लेकर असुरों के गुरुओं के नाम.
- देवताओं के गुरु: सभी देवताओं के गुरु देव गुरु बृहस्पति हैं. हालांकि बृहस्पति से पहले अंगिरा ऋषि देवताओं के गुरु थे.
- असुरों के गुरु: शुक्राचार्य को सभी असुरों का गुरु कहा जाता है. शुक्राचार्य से पहले महर्षि भृगु असुरों के गुरु थे.
- परशुराम के गुरु: भगवान परशुराम के गुरु भगवान शिव और दत्तात्रेय थे.
- भगवान रामजी के गुरु: भगवान श्रीराम के गुरु ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र थे.
- भगवान कृष्ण के गुरु: भगवान श्रीकृष्ण के गुरु गर्ग मुनि, सांदीपनि और महर्षि वेदव्यास जी थे.
- एकलव्य, पांडव और कौरवों के गुरु: गुरु द्रोण एकलव्य, पांडव और कौरवों के गुरु थे.
- बुद्ध के गुरु: भगवना बुद्ध के गुरु अलारा, कलम, गुरु विश्वामित्र, उद्धारा रामापुत्त आदि थे.
- आचार्य चाणक्य के गुरु: आचार्य चाणक्य के गुरु उनके पिता ऋषि चणक थे.
- रामकृष्ण परमहंस के गुरु: रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे. लेकिन इनके गुरु मंहत नागा बाबा तोतापुरी महाराज थे, जिससे इन्हें सिद्धि और समाधी की प्राप्ति हुई.
- साईं बाबा के गुरु: शिरडी साईं बाबा के गुरु सेलु के वैंकुशा बाबा थे.
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