Ved Vaani Importance of Ganga:  गंगा नदी भारत की सांस्कृतिक विरासतों में एक है. गंगा ना सिर्फ श्रेष्ठ व पवित्र नदी है बल्कि भारत को एक सूत्र में बांधने का श्रेय भी गंगा को है. वेद-पुराणों में तो गंगा को बारंबार तीर्थमयी कहा गया है.प्रथम वेद ऋगवेद में गंगा का जिक्र किया गया है. इसके बाद के तीन वेद यजुर, साम और अर्थवेद में भी गंगा का उल्लेख पवित्र नदी के रूप में किया गया है. केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐसी कोई भी नदी नहीं होगी, जिसे इतना महत्व और श्रेय मिला हो. यही कारण है कि गंगा को केवल जल का स्त्रोत नहीं माना जाता है, बल्कि देवी के समान इसकी पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में धार्मिक अनुष्ठान जैसे कई कार्य बिना गंगाजल के पूर्ण व शुद्ध नहीं माने जाते हैं.


वेद-पुराणों में गंगा नदी और गंगाजल का महत्व



  • गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है- ‘स्रोतसामस्मि जाह्नवी’
    अर्थ: नदियों में मैं जाह्नवी (गंगा) हूँ.

  • महाभारत में कहा गया है- ‘‘पुनाति कीर्तिता पापं द्रष्टा भद्र प्रयच्छति।
    अवगाढ़ा च पीता च पुनात्या सप्तम कुलम।।’’
    अर्थ:
    गंगा का उच्चारण करने से पापों का नाश होता है. दर्शन करने वालों लोगों का गंगा कल्याण करती है और स्नान करने वालों की सात पीढ़ियों तक को गंगा पवित्र करती है.

  • नृसिंह पुराण के अनुसार- ‘‘गंगे तव दर्शनात् मुक्ति:।’’ 
    अर्थ: गंगा तेरे दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिलेगी.


गंगाजल को क्यों माना जाता है इतना पवित्र


धार्मिक मान्यता के अनुसार वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और कई धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है. इसलिए गंगा को देवनदी भी कहा गया है. हिंदू धर्म में होने वाले विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम जैसे कि पूजा-अर्चना, अभिषेक, शुद्धिकरण गंगाजल के बिना अधूरे माने जाते हैं. मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है.


गंगा नदी कैसे बना श्रद्धा का केंद्र जाने इस पौराणिक कथा से


गंगा नदी से जुड़ी कई कथाएं हैं. इनमें सबसे प्रचलित और पौराणिक कथा के अनुसार राजा सगर को कठोर तपस्या के बाद साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई. एक दिन राजा सगर ने यज्ञ कराने का निश्चय किया. यज्ञ के लिये राजा को घोड़े की आवश्यक थी, जिसे इंद्र ने चुरा लिया था. राजा सगर ने अपने सभी पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया. अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला एक ऋषि के समीप बंधा हुआ मिला. ऋषि के समीप घोड़े को देख सगर के पुत्रों को लगा कि ऋषि द्वारा ही घोड़े को गायब किया गया है. सगर के पुत्रों ने उस कारण ऋषि का अपमान कर दिया. ऋषि जोकि हजारों वर्ष से तपस्या में लीन थे उन्होंने क्रोध से अपनी आंखें खोली और सगर के सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया.


सगर के पुत्रों की मृत्यु हो गई लेकिन उनकी आत्माओं को मोक्ष नहीं मिल पाया क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका था. सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी प्रयास जारी रखा.


इसके बाद भगीरथ जोकि राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे. वे अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने में सफल हुए. उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी. इससे पूवजों की राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएं स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सके. राजा भगीरथ ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की. ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुए. लेकिन गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर जाऊंगी तो पृथ्वी मेरा वेग सहन नहीं कर पाएगी. तब ब्रह्मा जी के कहने पर भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया.


शिवजी ने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई. वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा सागर
संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ. शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गईं.


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