Ved Vaani, Vedas Niti Niyam: वेद-पुराणों के ज्ञान से जीवन सुखमय बनता है. इसलिए कहा जाता है कि वेदों के ज्ञान से हमारी जिंदगी बदल सकती है. वेदों में नीति-नियम, धर्म और ज्ञान से संबंधित कई बातों का वर्णन मिलता है. इसे हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और प्राचीनतम ग्रंथ माना गया है, जिसे किसी साधारण मनुष्यों द्वारा नहीं बल्कि ऋषियों द्वारा गहरी तपस्या के बाद लिखा गया है, जिसे हम ‘वेद’ (Vedas) कहते हैं. वेद का सरल और स्पष्ट अर्थ है ‘ज्ञान’ (Knowledge) . वेदों में जन्म और मृत्यु से लेकर ग्रहण और माहवारी के दौरान होने वाले संक्रमण से बचने के नियमों के बारे में भी बताया गया है.


वैदिक काल (Vedic period) हो, पौराणिक या फिर कलयुग. दुनिया में संक्रमण का खतरा हमेशा से बना रहा है. हालांकि प्राचीन काल में वैसी चिकित्सा सुविधा नहीं हुआ करती थी, जोकि वर्तमान में हैं. ऐसे में विद्वानों द्वारा कई नियम बनाए जाते थे, जिससे कि साफ-सफाई और नियमों का पालन कर संक्रमण से बचा जा सके. संक्रमण और कई बीमारियों से बचने के लिए ही प्राचीनकाल में विद्वानों द्वारा सूतक-पातक के नियम बनाए गए हैं. जानते हैं इन नियमों के बारे में.


जन्म के दौरान होने वाले संक्रमण और इसके नियम


हिंदू धर्म में जिस तरह घर पर किसी परिजन की मृत्यु के समय कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, ठीक उसी तरह घर पर नवजात का जन्म होने पर भी सूतक लग जाता है. जन्म के दौरान जच्चा और बच्चा दोनों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है.


मान्यता है कि प्रसूति यानी बच्चे की मां को 45 दिनों तक सूतक रहता है. प्रसूति के साथ ही घरवालों के लिए भी सूतक रहता है. महिला की प्रसूति यदि पीहर में हो तो 3 दिन का, ससुराल में हो तो 10 दिन सूतक रहता है. वहीं अगर गर्भपात हो जाए तो जितने माह का गर्भपात होते है, उतने दिन तक पातक माना जाता है. इस दौरान संक्रमण के खतरे बढ़ जाते हैं. यही कारण है कि घर पर बाहरी लोगों का आना-जाना वर्जित होता है.


मृत्यु के बाद होने वाले संक्रमण और इसके नियम


गरुड़ पुराण में बताया गया है कि घर पर जब किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है तो पूरे 13 दिनों तक नियमों का पालन करना पड़ता है. इसे पातक कहते हैं. पुराण के अनुसार मृतक के परिजनों को पूरे 10 दिन और अंत्यक्रिया करने वाले को 12-13 दिन नियमों का कठोर पालन करना पड़ता है. इतना ही नहीं पूरे सवा महीने तक किसी के घर आना और जाना भी वर्जित होते हैं. वेद-पुराणों में बताया गया है कि मृतक की लाश को छूने वाले को 3 दिन, कंधा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि होती है.


मासिक धर्म में दौरान होने वाले संक्रमण और नियम


प्राचीनकाल में महिलाओं को मासिक धर्म या माहवारी के समय घर के नियमित कार्य जैसे पूजा-पाठ करने, भोजन पकाने और घर के अन्य कार्य करने से अलग कर दिया जाता था. क्योंकि मासिक धर्म के दौरान संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इस दौरान महिला के स्नान करने, भोजन करने और विश्राम करने की व्यवस्था भी अलग होती थी. इसके पीछे की धारणा स्वच्छता के नियमों का पालन और संक्रामण से स्वयं को बचाना भी था. क्योंकि तब आज की तरह आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध नहीं थी.


ग्रहण के दौरान संक्रमण और नियम


हिंदू धर्म में सूर्य और चंद्र ग्रहण के लिए भी नियम बनाए गए हैं. क्योंकि इस दौरान भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. मान्यता है कि ग्रहण के दौरान खाने-पीने की सामग्री सबसे अधिक दूषित होती है. इसलिए इन्हें ग्रहण के पहले पकाया जाता है और तुलसी (Tulsi) के पत्ते डाले जाते हैं. वेद-पुराणों और प्राचीनकाल विद्वानों द्वारा बनाए इन नियमों का पालन आज भी किया जाता है. पौराणिक मान्यता के साथ इसका वैज्ञानिक आधार भी है. क्योंकि तुलसी औषधीय गुणों से भरपूर है. आयुर्वेद में इसका प्रयोग कई तरह से किया जाता है. तुलसी में एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज पाई जाती है, जो पेट से संबंधित परेशानियों, जैसे पाचन तंत्र में परेशानी, पेट में जलन व एसिडिटी आदि दिक्कतों को दूर करने में मदद करती है.


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